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Sunday, 28 January 2024

उत्सव, उल्लास, व्यापकता - रामोत्सव


उफ़्फ़... ऐसा उत्सव, इतना उल्लास इतना व्यापक आयोजन !

ऐसा लग रहा है जैसे सारा जहां 'एक मात्र' शक्ति पुंज के लिए एकीकृत है, सब एक सूत्र में बंधे हैं, सब मात्र एक जाति और सम्प्रदाय के हैं... हर वर्ग अपने दुःख दर्द भूल प्रभु के शरण में आनंदित हो रहा है जैसे।

एक मित्र ने वीडियो कॉल करके दिखाया कि उनके घर कैसी तैयारियाँ चल रही है घर और गली को सजाने में... पीला झंडा, लाल झंडा, तोरण, पल्लव-गेंदा... सब हो रहा. एक बेवरे मित्र ने कल रात कहा - "यार, इतना मज़ा किसी बार में नहीं आया कभी... साला झंडा उठाओ, नौटियाल या रघुवंशी को बजा लो और झूमने लगो।" यूँ ही दिल्ली के एक लौंडे ने आधी रात को पूछा - "भैया, आप क्या ख़ास कर रहे हो कल? मैंने तो सोचा है पानी की छोटी बोतल लेकर मंदिर के सामने हर आते जाते में बाँटूँगा।" एक मित्र अपने घर पर रामायण पाठ का आयोजन करे बैठे हैं, कोई फलाहार में है तो कोई भजन वायरल कर रहा.

कुछ लोगों से गाँव में बात हुयी कल. कोई कह रहा था - "कुछ तो देव का अंश है मोदी में..." - एक अधेड़ बोलने लगे - "मोदिया है, कहीं कल हिन्दू राष्ट्र ना घोषित कर दे." - एक वृद्धा कह रही थी - "अब इस जनम में और कुछ नहीं चाहिए, अब उठा ले भगवान तो भी कोई चिंता नहीं.. सब मिल गया.."

मतलब हर एक प्राणी लगा हुआ है इस उपलक्ष्य को अनोखा और यादगार बनाने में. मुझसे अति इमोशनल प्राणी के आँखों में राम भजन गाते आंसू आ जाते हैं, आवाज़ भर्राने लगती है... सुबह मोर्निंग वाक में कैप की जगह भगवा गमछा बांध का जाने लगा हूँ कुछ दिनों से...

कहीं दूर "सुन्दर काण्ड" बज रहा, कहीं "भारत का बच्चा-बच्चा" तो कहीं कोई और भजन. बड़े म्यूजिक बॉक्स की धमक सबकुछ अन्दर तलक हिला दे रहा है. कुल मिलाकर सारा देश 'मेनिपुलेट' हो चूका है...

गली-मोहल्ले, चौराहे, दफ़्तर... हर जगह किसी के पास कोई दूसरा महत्वपूर्ण काम नहीं है. मैं कल पूरे दिन दफ़्तर में गुनगुनाता रहा - "सिया सुकुमारी, मिथिला के दुलारी, पाहून हमर, रघुवर धनुर्धारी" - शॉप फ्लोर में, वेंडर के सामने, मीटिंग में... आते-जाते उठते-बैठते, हर जगह राम ही राम हैं. मैं आज सुबह से ओस्मान मीर का गाया - "राम जी पधारे, श्री राम जी पधारे, देखो अवध नगरिया में राम जी पधारे" - लगातार सुने जा रहा हूँ.

सनातन का असल रूप यही है संभवतः...द्वेष, अभाव, ईर्ष्या - सब पर भारी है रामोत्सव का उल्लास. इससे ऊपर किसी को कुछ नहीं चाहिए. कोई किसी को न उकसा रहा है और ना ही किसी से किसी की कोई प्रतिस्पर्धा ही है... सब अपने अपने तरीके से लगे हैं. सबके चेहरे चमक रहे. अभी अभी अयोध्या निवासी मित्र ने यहाँ वड़ोदरा के ही सेजल पटेल द्वारा राम मंदिर की साज सज्जा पर कुछ तस्वीरें भेजी हैं. मेरे घर से तक़रीबन तीन किलोमीटर की दुरी पर सेजल के घर के आस पास भी उल्लास का माहौल है.

मुझे याद है इस तरह का उल्लास "बाबरी-मस्जिद" के ढांचे को ढहाने पर देखा था. उस वक़्त मैं इलाके में संघ के स्त्रोत वाले गाँव में था. इस तरह का तो नहीं, इससे मिलता जुलता उत्सव अर्ध रात्रि को भारत के विश्व-कप जीत पर भी अनुभव किया था. किन्तु ये वाला... आप सब साथ होते तो साथ में गाते - "अयोध्या में एला रघुनन्दन, कौशल्या नंदन हे, ललना रे धन्य अवध केर माटी, जग करे अभिनन्दन रे."