यूँ तो भीड़ में से एक हूँ, बस एक बेचैनी को छोड़कर. लोग कहते हैं कि पागलपन का कीड़ा है मेरे अंदर, जो अनवरत काटता रहता है जो कभी सहज नहीं होने देता. वर्तमान का आनंद लेने के बजाय भविष्य की सोच में रहता है हरदम. अपने अलावा सबकी चिंता में रहता है. रोचक पढ़ने और लिखने का शौक रहा है. ह्रदय से मिश्रित रस का कवि भी हूँ, ये और बात है की बयां करने को शब्द नहीं होते.
...मजबूरन नौकरीपेशा हूँ. जब जो किया तहेदिल से किया और संभवतः इसी कारणवश देश-दुनिया के कार्यक्षेत्रीय दोस्त सफल भी मानते हैं. कंक्रीट की कंदराओं में अकेलापन और अपनों की याद समेटे कुछ लिख कर बैचैनी की दवा ढूंढता हूँ. खेतिहर ब्राम्हणवादी संयुक्त परिवार से हूँ, सो मिट्टी का सोंधापन भी बचा है अंदर कहीं-न-कहीं. दरभंगा, मिथिला के एक सुन्दर से गाँव में दबी हैं मेरी जड़ें जो बड़े शहरों की रंगीनियों से खुद को मुरझाने से बचाने को प्रयासरत है.
मेरा नाम प्रवीण कुमार है। एक कविता लिखने का प्रयास है। मुझे स्पष्ट है, मैं कवि नहीं, अशुद्धियाँ अधिक होती हैं। वजह प्राथमिकता की है। कविता नहीं है मेरी प्राथमिकता... आप से भी जबरिया पढ़ने का आग्रह नहीं है। लाजिमी है, आपकी भी अपनी प्राथमिकताएं होंगी। खुद का टूटा फुट लिखा कभी अच्छा लग जाता है, लगा सो डॉक्यूमेंट कर लिया।
कविता का शीर्षक है ~मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी~
मुझे पता हैकुछ शब्द गहरे जख्मों से अधिक दर्द देते हैंशायद यही वजह हो कि मैंने ऐसे शब्द कहे'शायद' इसलिए क्योंकि"मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी"
हाँ, कहा था न मैंने"मैं प्यार नहीं करता तुमसे"और तुम ओझल हो गयीलेकिन तुम ही कहो कीक्या तो सही कहूंगा मैं जब"मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी"
तुम्हें पता तो हैमेरे दिल की बातों का दमजुबां तक आते घुट जाता हैहालाँकि ऐसी कोई तकनीक नहींजो मन की किसी दूजे मन को समझा देतुम खुद क्यों नहीं समझ जाती कि"मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी"
यह कम्युनिकेशन गैप हैजिसका की मतलबहम दोनों अपने तरफ सोचते रहेहथियार डालता हूँ मैं अब मगरडॉक्टर perplexity और insomnia कहते हैंमगर तुम ही कहो की मर्ज क्या हैजबकि तुम्हें पता तो है कि"मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी"
क्या तो कहूं क्या छुपाऊंख्याल आया और हाथ दिवाल पर मार लियाऔर जूते की नोक पत्थर पर....कहो की क्या कहूं डॉक्टर को"मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी"
जहाँ मिलती थी तुमअसंख्य बार उस जगह को जाकर आयान पाकर खुद को कोसता, गुस्से में सिगरेट ढूंढता...और फिर लथपथ होकर बैठ जाता हूँ।तुम समझती क्यों नहीं आखिर कि"मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी"
मुझे पता हैतुम्हें भी मेरी याद आती तो होगी हीलेकिन मेरे वो अल्फाज"नहीं मैं तुमसे प्यार नहीं करता"रोक देते होंगे तुम्हें...मगर क्या तुम्हें पता नहीं की"मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ कुछ भी"
24 नवंबर 2019, Hongkong से Shenzhen के रास्ते