अखंड

अपने मन का आंकलन, न किसी का रिफरेन्स और न ही व्यक्ति या वाद विशेष का अनुगामी. अपना पक्ष, अपना नजरिया और अपना ही अनुभव.

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Sunday, 28 January 2024

उत्सव, उल्लास, व्यापकता - रामोत्सव

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उफ़्फ़... ऐसा उत्सव, इतना उल्लास इतना व्यापक आयोजन ! ऐसा लग रहा है जैसे सारा जहां 'एक मात्र' शक्ति पुंज के लिए एकीकृत है, सब एक सूत्...
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प्रवीण कुमार झा

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आचार्य
यूँ तो भीड़ में से एक हूँ, बस एक बेचैनी को छोड़कर. लोग कहते हैं कि पागलपन का कीड़ा है मेरे अंदर, जो अनवरत काटता रहता है जो कभी सहज नहीं होने देता. वर्तमान का आनंद लेने के बजाय भविष्य की सोच में रहता है हरदम. अपने अलावा सबकी चिंता में रहता है. रोचक पढ़ने और लिखने का शौक रहा है. ह्रदय से मिश्रित रस का कवि भी हूँ, ये और बात है की बयां करने को शब्द नहीं होते. मजबूरन नौकरीपेशा हूँ. जब जो किया तहेदिल से किया और संभवतः इसी कारणवश देश-दुनिया के कार्यक्षेत्रीय दोस्त सफल भी मानते हैं. कंक्रीट की कंदराओं में अकेलापन और अपनों की याद समेटे कुछ लिख कर बैचैनी की दवा ढूंढता हूँ. खेतिहर ब्राम्हणवादी संयुक्त परिवार से हूँ, सो मिट्टी का सोंधापन भी बचा है अंदर कहीं-न-कहीं. दरभंगा, मिथिला के एक सुन्दर से गाँव में दबी हैं मेरी जड़ें जो बड़े शहरों की रंगीनियों से खुद को मुरझाने से बचाने को प्रयासरत है.
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