Showing posts with label #सनातन. Show all posts
Showing posts with label #सनातन. Show all posts

Saturday, 16 August 2025

चरित्र और सामाजिक विकास


स्वामी विवेकानंद शिकागो शहर में गेरुआ वस्त्र पहने घूम रहे थे। कुछ लोगों का अत्याधिक कौतूहल देख बोले - "देखिये, आपके अमेरिका में एक दर्जी सुंदर वेषभूषा सिल कर किसी को भी सभ्य पुरुष बना देता है, परंतु हमारे भारत में चरित्र ही किसी को सभ्य पुरुष बनाता है।"

स्वामी विवेकानंद जी के ही हिसाब से - मनुष्य का चरित्र इससे तय होता है कि किसी भी काम के प्रति उसकी प्रवृत्ति कैसी है। वह वही बनता है जो उसके विचार उसे बनाते हैं। हम कर्म करते हैं और इस दौरान आये प्रत्येक विचार जिसका हम चिंतन करते हैं, वे सब हमारे चित्त पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं। प्रत्येक मनुष्य का चरित्र इन सारे प्रभावों के आधार पर तय होता है। यदि यह प्रभाव अच्छा हो तो चरित्र अच्छा होता है और यदि खराब तो चरित्र बुरा होता है।

चरित्र निर्माण की इस प्रक्रिया से जहां यह निर्धारित होता है कि कोई व्यक्ति आगे चलकर कैसा बनेगा, वहीं यह भी तय होता है कि इससे भावी समाज और संसार का निर्माण कैसा होगा। आज अगर हम अपने आसपास भ्रष्टाचार, दुराचार और ऐसी ही समस्याओं की अधिकता देख रहे हैं, तो इन समस्याओं का मूल कारण चरित्र निर्माण की उपेक्षा ही है।

आज के दौर में अपने क्षणिक स्वार्थ में लोग जीवन के इस सबसे महत्वपूर्ण कार्य यानी चरित्र निर्माण को भुला बैठे हैं। यही वजह है कि ऊपरी तौर पर विकास के नए-नए रिकॉर्ड बनाने के बावजूद हमारा समाज नैतिक मूल्यों के पतन की समस्या से बुरी तरह जूझ रहा है। इसका परिणाम गंभीर मनोरोगों से लेकर आपसी कलह, अशांति और गहन विषाद रूपी ला-इलाज बीमारी बन रहा है। चरित्र निर्माण की बातें, आज परिवारों में उपेक्षित हैं, शैक्षणिक संस्थानों में नादारद हैं, समाज में लुप्तप्रायः है। शायद ही इसको लेकर कहीं गंभीर चर्चा होती हो। जबकि घर-परिवार एवं शिक्षा के साथ व्यक्ति निर्माण, समाज निर्माण और राष्ट्र निर्माण का जो रिश्ता जोड़ा जाता है, वह चरित्र निर्माण की धूरी पर ही टिका हुआ है। आश्चर्य नहीं कि हर युग के विचारक, समाज सुधारक चरित्र निर्माण पर बल देते रहे हैं। चरित्र निर्माण के बिना अविभावकों की चिंता, शिक्षा के प्रयोग, समाज का निर्माण अधूरा है। 

मेरी समझ से सरकार द्वारा किये जा रहे या किये जानेवाले विकास कार्यों से भी जरूरी समाज के लिए चरित्र का विकास है। वो चरित्र ही है जो बड़े से बड़े लालच में भी व्यक्ति को अपने कर्तव्य पथ से डिगने नहीं देती। कोई भी व्यक्ति सत्कर्मों और अच्छे विचारों से अपने चरित्र का निर्माण कर सकता है... उसमें निरंतरता कायम रख सकता है।

जिस तरह जीवित रहने के लिए सांस चाहिए और पोषण के लिए शरीर को भोजन-पानी की जरूरत होती है, उसी तरह चरित्र बनाए रखने के लिए भी उसे अच्छे विचारों के खाद-पानी की जरूरत होती है और यह खाद-पानी खुद को अनुशासित रखने मात्र से ही मिलती है।

अनुशासन के अभाव में जब हम अपने नैतिक मूल्यों से तालमेल नहीं बिठा पाते हैं, तो हम भीतर से टूट जाते हैं और ऐसे में वह बाहरी समाज से भी समायोजन करने में नाकाम हो जाता है। चरित्र निर्माण में अच्छे विचारों और चिंतन से ज्यादा महत्व श्रेष्ठ आचरण का है। हमारे विचार, कर्म, व्यवहार, चरित्र और लक्ष्य प्राप्ति सभी कुछ एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही पाते हैं।

एक विचारक कह गए हैं - "अपने विचार का बीज बोओ, कर्म की खेती काटो। कर्म का बीज बोओ, व्यवहार की फसल पाओ। व्यवहार का बीज बोओ, चरित्र (कीर्ति) का फल पाओ। चरित्र का बीज बोओ, भाग्य की फसल काटो।"

आरएसएस आ स्वतंत्रता संग्राम - संक्षिप्त विवरण


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्थापना 1925 मे डॉ॰ केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा नागपुर मे भेल छल। संगठनक मुख्य उद्देश्य हिंदू सभके एकजुट करबाक आ समाजक नैतिक मूल्य सभके सुदृढ़ करबाक छल। ध्यान देबऽ जोग बात ई जे स्व. हेडगेवार स्वयं पहिले कांग्रेस-नेतृत्व वाला राष्ट्रीय आंदोलन में सहयोगी छलाह आ ओ लोकमान्य तिलकक विचार सँ बेसी प्रभावित छलाह। विद्यार्थी जीवन मे ओ ब्रिटिश शासनक खिलाफ बहुत आंदोलन मे भाग लेने छलाह जाहि में असहयोग आंदोलन (1920–22) सेहो शामिल अछि।

संघ केँ लय विरोधी इतिहासकार सभक दृष्टिकोण अलग छल। बहुतों इतिहासकार मानैत छथि जे स्थापनाक बाद आरएसएस सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930–34) अथवा भारत छोड़ो आंदोलन (1942) सन नमहर आंदोलन मे भाग नहि लेने छल। हुनक सबहुक मतानुसार ताहि समय संगठन राजनीतिक टकरावक बजाय सामाजिक कार्य, अनुशासन आ वैचारिक प्रशिक्षण पर बेसी ध्यान देने छल। 1930–40 दशकक ब्रिटिश खुफिया रिपोर्टक मुताबिक़ आरएसएस केँ राजनीतिक रूप सँ ब्रिटिश शासनक लेल खतरा नहि मानल गेल छल। बल्कि संगठन समाज सुधार, भविष्यक भारत आ हिंदू एकजुटता के लय के बेसी मुखर छल। 

अहि सभ में पूर्वोत्तर राज्य आ पटना में व्याप्त देह व्यापार रोकब आ तखन के पाकिस्तान में स्त्री सब के सुदृढ़ आ एकजुट करब आरएसएस महिला विंग के प्रमुख काज छल। 

आरएसएस समर्थक आ ओहि सँ जुड़ल इतिहासकार मानैत छथि जे संगठन अप्रत्यक्ष रूप सँ स्वतंत्रता संग्राम में अपन योगदान देने छल। संघ सामाजिक अनुशासन, एकता आ राष्ट्रीय गौरवक भावना जागृत करब, जकरा ओ औपनिवेशिक शासनक खिलाफ दीर्घकालीन तैयारीक हिस्सा मानैत छलाह- अहि दिशा में प्रयासरत छलाह। अहि वर्ग के इतिहासकार लोकनि हेडगेवारक स्वतंत्रता आंदोलन में व्यक्तिगत योगदान आ किछु स्वयंसेवक द्वारा क्रांतिकारी गतिविधि सह स्वतंत्रता संग्राम संगठन में शामिल हेबाक बात सेहो कहैत छथि।

सारांश ई जे प्रत्यक्ष सशस्त्र वा जन-राजनीतिक संघर्ष में आरएसएसक भूमिका सीमित रहल मुदा अप्रत्यक्ष योगदानक तौर पर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, सामाजिक एकता आ नैतिक दृष्टि सँ समाजक तैयारी द्वारा राष्ट्र-निर्माण में संघ के भूमिका मुखर आ अग्रणी रहल।

Saturday, 12 April 2025

हनुमान जन्म, शक्तियों का पाना और सिंदूर स्नान की कथाएं

हनुमान जन्म 

महाराजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं परंच पुत्रहीन ही थे. काफी जप तप किया गया, कई जतन हुए... आखिरकार एक बड़े यज्ञ का आयोजन हुआ. यज्ञ की पूर्णाहुति के साथ ही एक फल की प्राप्ति हुई. ब्राह्मणों द्वारा इस फल के टुकड़े तीनों रानियों को खिलाने का आदेश हुआ.

महारानी कैकेयी जब फल खा रही थी, एक पक्षी उनके हाथ बचा टुकड़ा ले उड़ा. उधर उसी समय अंजना एक पर्वत पर पुत्र रत्न की प्राप्ति की आस में भगवान का सुमिरन करते टहल रही थी. पक्षी ने उस फल का टुकड़ा उसी पर्वत पर गिरा दिया... अंतत: पवन देव की कृपा से यह फल अंजना को प्राप्त हुआ और हनुमान का जन्म हुआ.

नोट - चूँकि कैकेयी ने भरत को जन्म दिया इसलिए हनुमान को भरत का भाई भी कहा जाता है.


हनुमान द्वारा शक्तियों की प्राप्ति 

हम सबने हनुमान द्वारा सूर्य निगलने की कथा सुनी होगी. आइये उससे आगे की कथा जानें.

निगलने के प्रयास में सूर्य के करीब पहुँचते देव लोक में हाहाकार मच चूका था. आख़िरकार इंद्रदेव ने वज्र के प्रहार से हनुमान को मूर्छित कर दिया. हनुमान के पिता पवनदेव ने गुस्से में सारे जग में वायु का प्रवाह बंद कर दिया... सभी जीव जंतुओं का दम घुटने लगा. देव-लोक में पुनः हाहाकार मच गया. सारे देवता पवन देव के आगे नतमस्तक थे. प्रायश्चित स्वरुप वो सब एक एक कर हनुमान को वरदान देने लगे. 

इस क्रम में सर्वप्रथम ब्रह्मा ने अमरता का वरदान दिया. साथ में 'हनुमान अपनी इच्छा से अपनी परिस्थिति बदल लेंगे' इसका वर भी दिया. सूर्यदेव ने अपनी उर्जा और चमक का एक हिस्सा तो दिया ही, उन्हें वेदों का ज्ञान सिखाने का भार भी लिया. वरुणदेव जी ने हनुमान को पानी के प्रभाव से मुक्त होने का वरदान दिया तो यमदेव ने डर से मुक्ति का. उधर कुबेर ने हनुमान को गदा प्रदान कर हर युद्ध में विजय प्राप्ति का वरदान दिया. पवन देव इतने पर भी नहीं माने तो ब्रह्मा ने आगे से हनुमान के किसी भी हथियार से घायल न होने का वर दे दिया. इस प्रकार से हनुमान ने शक्तियां भी पायीं और पवन देव ने संसार में पुनः वायु सेवा बहाल की.

हनुमान का सिंदूर स्नान 

हनुमान ने अपने प्रभु श्रीराम के लिए स्वयं को न्योछावर कर दिया. प्रभु की सारी ईच्छाओं की पूर्ति हेतु जी जान से लग गए. प्रभु को व्याकुल न होने दिया. बलि पर विजय, समुद्र लांघना, माता सीता को सन्देश, लंका-दहन... रावण से युद्ध विजय आदि आदि. हर पल हनुमान अपने प्रभु के साथ रहे... बिलकुल करीब.

प्रभु श्रीराम के अयोध्या लौटने पर हनुमान ने देखा सीता माता हर पल उनके प्रभु के साथ रह्तीं. उन्हें तकलीफ होती किन्तु चुप रहते. कई अवसर पर जब अकेले माता सीता ही प्रभु श्री राम के पास रहती तो हनुमान किसी तरह राम नाम का जाप करते समय गुजारते.

एक दिन हनुमान से रहा नहीं गया. वो अपने भाई समान भरत के सामने फ़ैल गए. व्याकुल हो, भावनाओं में आकर बोले - "बड़े भाई, मैंने क्या क्या नहीं किया... मुझसे ऐसी क्या गलती हुई की मैं हर पल अपने प्रभु के साथ नहीं रह सकता ?" - भरत को जवाब न देते देख हनुमान भाव विह्वल हो बोले - "भैया, मैं प्रभू के पास रहकर अपने भूख-प्यास, आराम.. सबको त्याग दूंगा, बस मुझे बताओ की आखिर सीता माता का कौन सा ऐसा तप ऐसा है जिसकी वजह से उन्हें वो अधिकार प्राप्त है जो मुझे नहीं ?"

भरत बोले - "हनुमान, वो उनकी पत्नी है, उनके नाम का सिंदूर अपनी मांग पर लगाती हैं..." - हनुमान के मन में बात बैठ गयी. उनके और प्रभु श्रीराम के बीच की बाधा मिटा देना चाहते थे वो.

अगले दिन राम-दरबार लगा. सब हनुमान को तलाश रहे थे. दरबार में हमेशा प्रभु श्रीराम के चरणों के पास रहने वाले हनुमान आज कहीं नहीं थे. प्रभु श्री राम भी चिंतित थे... कर्त्तव्य वश राज काज का कार्य चलने लगा.

इसी बीच हनुमान का पदार्पण हुआ. मगर यह क्या, हनुमान ने सारे शरीर में सिंदूर क्यों पोत रखा था ? दरबार में हंसी गूंजने लगी... भरत हनुमान जी के पास जा कर पूछने लगे - "हनुमान भाई, ये सब क्या है ? क्यों किया ये सब ? क्या प्रयोजन था ?" - हनुमान चुपचाप प्रभु श्रीराम के सिंहासन की तरफ बढ़ रहे थे. वो राम के चरणों में पहुँच बोले - "मेरे प्रभु, मेरे राम, सीता माता एक चुटकी सिंदूर की वजह से प्रतिपल आपके साथ रहने का अधिकार पाती हैं, आज मैं पुरे अयोध्या का सिंदूर अपने शरीर पर ले आया हूँ... अब तो चरणों से दूर नहीं करोगे प्रभु ?"

दरबार में शान्ति थी... सबकी आँखों में आंसू मात्र थे.
-------------------------------------
आप सबको हनुमान जन्मोत्सव की शुभकामनाएँ !

#हनुमान #सनातन #हनुमानजन्मोत्सव

Sunday, 7 April 2024

हनुमान : जन्म, शक्तियां और सिंदूर स्नान कथा

हनुमान जन्म का रहस्य 

महाराजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं परंच वो पुत्रहीन ही थे. काफी जप तप किया गया, कई जतन हुए... आखिरकार एक बड़े यज्ञ का आयोजन हुआ. यज्ञ की पूर्णाहुति के साथ ही एक फल की प्राप्ति हुई. ब्राह्मणों द्वारा इस फल के टुकड़े तीनों रानियों को खिलाने का आदेश हुआ. 

महारानी कैकेयी जब फल खा रही थी, एक पक्षी उनके हाथ बचा टुकड़ा ले उड़ा. उधर उसी समय अंजना एक पर्वत पर पुत्र रत्न की प्राप्ति की आस में भगवान का सुमिरन करते टहल रही थी. पक्षी ने उस फल का टुकड़ा उसी पर्वत पर गिरा दिया... अंतत: पवन देव की कृपा से यह फल अंजना को प्राप्त हुआ और हनुमान का #जन्म हुआ. 

नोट - चूँकि कैकेयी ने भरत को जन्म दिया इसलिए हनुमान को भरत का भाई भी कहा जाता है.    

कैसे हुई शक्तियां प्राप्त 

हम सबने हनुमान द्वारा सूर्य निगलने की कथा सुनी होगी. आइये उससे आगे की कथा जानें. 

निगलने के प्रयास में सूर्य के करीब पहुँचते देव लोक में हाहाकार मच चूका था. आख़िरकार इंद्रदेव ने वज्र के प्रहार से हनुमान को मूर्छित कर दिया. हनुमान के पिता पवनदेव ने गुस्से में सारे जग में वायु का प्रवाह बंद कर दिया... सभी जीव जंतुओं का दम घुटने लगा. देव-लोक में पुनः हाहाकार मच गया. सारे देवता पवन देव के आगे नतमस्तक थे. प्रायश्चित स्वरुप वो सब एक एक कर हनुमान को वरदान देने लगे. 

सर्वप्रथम ब्रह्मा ने अमरता का वरदान दिया. साथ में 'हनुमान अपनी इच्छा से अपनी परिस्थिति बदल लेंगे' इसका वर भी दिया. सूर्यदेव ने अपनी उर्जा और चमक का एक हिस्सा तो दिया ही, उन्हें वेदों का ज्ञान सिखाने का भार भी लिया.  वरुणदेव ने हनुमान को पानी के प्रभाव से मुक्त होने का वरदान दिया तो यमदेव ने डर से मुक्ति का. उधर कुबेर ने हनुमान को गदा प्रदान कर हर युद्ध में विजय प्राप्ति का वरदान दिया.


पवन देव जब इतने पर भी नहीं माने तो ब्रह्मा ने आगे से हनुमान के किसी भी हथियार से घायल न होने का वर दे दिया. इस प्रकार से हनुमान ने शक्तियां भी पायीं और पवन देव ने संसार में पुनः वायु सेवा बहाल की. 

सिंदूर स्नान

हनुमान ने अपने प्रभु श्रीराम के लिए स्वयं को न्योछावर कर दिया. प्रभु की सारी ईच्छाओं की पूर्ति हेतु जी जान से लग गए. प्रभु को व्याकुल न होने दिया. बलि पर विजय, समुद्र लांघना, माता सीता को सन्देश, लंका-दहन... रावण से युद्ध विजय आदि आदि. हर पल हनुमान अपने प्रभु के साथ रहे... बिलकुल करीब.

प्रभु श्रीराम के अयोध्या लौटने पर हनुमान ने देखा सीता माता हर पल उनके प्रभु के साथ रह्तीं. उन्हें तकलीफ होती किन्तु चुप रहते. कई अवसर पर जब अकेले माता सीता ही प्रभु श्री राम के पास रहती तो हनुमान किसी तरह राम नाम का जाप करते समय गुजारते. 

एक दिन हनुमान से रहा नहीं गया. वो अपने भाई समान भरत के सामने फ़ैल गए. व्याकुल हो, भावनाओं में आकर बोले - "बड़े भाई, मैंने क्या क्या नहीं किया... मुझसे ऐसी क्या गलती हुई की मैं हर पल अपने प्रभु के साथ नहीं रह सकता ?" - भरत को जवाब न देते देख हनुमान भाव विह्वल हो बोले - "भैया, मैं प्रभू के पास रहकर अपने भूख-प्यास, आराम.. सबको त्याग दूंगा, बस मुझे बताओ की आखिर सीता माता का कौन सा ऐसा तप ऐसा है जिसकी वजह से उन्हें वो अधिकार प्राप्त है जो मुझे नहीं ?" भरत बोले - "हनुमान, वो उनकी पत्नी है, उनके नाम का सिंदूर अपनी मांग पर लगाती हैं..."  - हनुमान के मन में बात बैठ गयी. उनके और प्रभु श्रीराम के बीच की बाधा मिटा देना चाहते थे वो. 

अगले दिन राम-दरबार लगा. सब हनुमान को तलाश रहे थे. दरबार में हमेशा प्रभु श्रीराम के चरणों के पास रहने वाले हनुमान आज कहीं नहीं थे. प्रभु श्री राम भी चिंतित थे... कर्त्तव्य वश राज काज का कार्य चलने लगा. इसी बीच हनुमान का पदार्पण हुआ. मगर यह क्या, हनुमान ने सारे शरीर में सिंदूर क्यों पोत रखा था ? दरबार में हंसी गूंजने लगी... भरत हनुमान जी के पास जा कर पूछने लगे - "हनुमान भाई, ये सब क्या है ? क्यों किया ये सब ? क्या प्रयोजन था ?" - हनुमान चुपचाप प्रभु श्रीराम के सिंहासन की तरफ बढ़ रहे थे. वो राम के चरणों में पहुँच बोले - "मेरे प्रभु, मेरे राम, सीता माता एक चुटकी सिंदूर की वजह से प्रतिपल आपके साथ रहने का अधिकार पाती हैं, आज मैं पुरे अयोध्या का सिंदूर अपने शरीर पर ले आया हूँ... अब तो चरणों से दूर नहीं करोगे प्रभु ?"

दरबार में शान्ति थी... सबकी आँखों में आंसू मात्र थे. 

#हनुमान #सनातन