
अरे नहीं नहीं, मैं कुछ सुनाने वाला नहीं... चूँकि किसी ने सुनना नहीं सो मैंने भी अब कहना छोड़ दिया है... सो आप सब यूँ ही कमाल करते रहें, धोती फाड़ कर रुमाल करते रहें.... पाग-दोपटा पहनाते और पहनते रहें.... मिथिला महान गाते रहें, आयोजन के नाम पर मिथिला-मैथिली के विस्तार का दंभ भी भरें और मैथिली भाषा के नाम रुदन करते दो टके का नेता भी बनते रहें. मुझे किसी से कोई शिकवा गिला नहीं इसे लेकर.
हाँ तो जय जय सिया राम आप सबों को. असल में कुछ बातें याद दिलाने का मन हुआ, आखिर मैं भी मैथिल हूँ, थोडा थेथड़पना तो होगा ही मेरे भी अन्दर. कई वर्ष पहले की बात है, टीवी शो "इंडियन आइडल" में बेटी मैथिली ठाकुर के नाम पर मैथिलों की एक मुहीम चली थी. उसको स्टार बनाने की मुहीम. मैंने अपने "सच बात कहीं बोलें" वाले स्टाइल में इसका विरोध करते लिखा था - "उसे आकाश छूने लेने दो, मिथिला की नहीं देश की बेटी बन लेने दो उसे... तभी जीतेगी" - लाजिमी था, अभियानियों को मेरी बात अरुचिकर लगी. किसी ने दबी जबान तो किसी ने बदजबानी से मेरा पुरजोर विरोध किया. आगे जो कुछ भी घटा अब ईतिहास है.
खैर, दिन बीते, कई मौकों पर बेटी मैथिली ने अभियानियों को निराश किया. या फिर यूँ कहें की उनकी अपेक्षाओं पर खड़ी नहीं उतरी (उनके धुन पर नाचने से इनकार कर दिया) और वही हुल्ले-लेले करने वाले अभियानी मैथिली को मिथिला विरोधी बताने लगे. आदतन मैंने इसका भी विरोध किया. मेरा मानना है कि भले तुमलोग कितना भी उछल लो कोई भी मिथिला का बेटा या बेटी मिथिला से पहले अपने परिवार का होता है, उसके निजी जीवन की अपनी प्राथमिकताएं होती हैं, उसका खुद का संघर्ष होता है, इस संघर्ष में हमारा तुम्हारा कोई भी सकारात्मक योगदान नहीं होता, सफ़लता प्राप्ति उसकी पहली मंजिल होती है और इसे पाने को सिर्फ मिथिला नहीं अपितु समूचे राष्ट्र और फिर विश्व को उसका फलक बनने दो.
अब तक आपको फिर से मेरी बात बुरी लगने लगी होगी... अभी रुकिए थोडा, थोड़ी देर और पढ़िए, संभव है आप मेरे इनबॉक्स में अपशब्द तक पहुँचने तक पहुँच जाएँ. हाँ तो जब कोई मिथिला का बेटा या बेटी अपने मुकाम को पा जाये, जब वो कुछ करने लायक हो जाए, जब उसके खुद के ख्वाब पुरे हो जाएँ तो फिर आप उसका आंकलन करें की उसने मिथिला-मैथिली हेतु क्या योगदान किया. क्योंकि तब वो सबल और उन्मुक्त होता है... अभी त्वरित मेरे दिमाग में भास्कर-ज्योति का नाम आ रहा है जो इसका बढियां उदाहरण हैं. अपना पैर जमाने के बाद वो मैथिली भाषा साहित्य और मिथिला समाज हेतु सदेह योगदान को तैयार होते हैं.
इसी सन्दर्भ में बात कल के एक घटनाक्रम की करना चाहूँगा. देश में चुनाव का माहौल है, प्रधानमंत्री मोदी ने क्षेत्रीय इलाकों में सांस्कृतिक योगदान हेतु एक आयोजन किया मंडपम. इसमें बेटी मैथिली ठाकुर भी सम्मानित हुयीं. प्रधानमंत्री ने इस कार्यक्रम में क्षेत्रीय भाषा के गीत संगीत के महत्व की बातें की और मैथिली से कुछ गाने का आग्रह भी किया. मैथिली अब सबल और उन्मुक्त हो चुकी हैं, उस फलक पर उनका मैथिली में गाना उनको नया आयाम देता... अफ़सोस, उन्होंने हिंदी में गाया... संभवतः मैथिली की अपनी कोई मज़बूरी रही होगी, उनके मार्गदर्शकों का दवाब भी रहा हो शायद किन्तु वो आन्दोलनकारी जनता पता नहीं किधर है फ़िलहाल.
यह एक मात्र उदाहरण है, इस कड़ी में कई स्थापित नाम और संस्थाएं दोषी हैं. जब हम मात्र फेम के लिए मिथिला-मैथिली का नाम लेते हैं और जब हमें मिथिला मैथिली के लिए कुछ योगदान देना होता है तो हम अपनी औकात पर आ जाते हैं. मैथिल साहित्यकार और नामचीन हस्तियाँ आयोजनों में भाग लेते हैं... हासिल क्या होता है, अपनी अज्ञानता वश मुझे इसका भान नहीं किन्तु जिस हिसाब से साहित्यकार आने-जाने और रहने की सुविधाओं का भाव बट्टा करते हैं वो आजकल कोई नव विवाहित अपने ससुराल में भी न करता होगा. ऐसे ही नामचीन लोग जो मंचासीन होने को आते हैं और आदर्श बातें करते हैं, काश अपने संस्थानों में भी कम से कम मैथिलों के लिए आदर्श व्यवहार करते. इन दोनों ही केस के कई उदाहरण सबूत समेत मेरे पास हैं... सो इस मुद्दे पर बहस कर पंगा न ले कोई... मेरी सेहत के लिए अच्छा ही होगा.
यही हाल अब उन आन्दोलनकारियों का भी है जो कल तक मिथिला की हर समस्या को लेकर तलवार भांजते थे. मिथिला क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य और सुविधाओं के लिए आफन तोड़ने वाले आज पद प्राप्ति के बाद न केवल शिक्षा और स्वास्थ्य को भुला बैठे हैं बल्कि स्वयं की सुख सुविधाएँ अर्जित करने में ऐसे लगे की खुद अपने संगठन की नहीं सुनते.
एक दुसरे के नीक कार्य को हम कितना सराहते हैं, हमारे नामचीन कितना साहित्य पढ़ते हैं, हम कितना मैथिली सिनेमा देखते हैं... हमारा कितना निस्वार्थ त्याग समाहित होता है आयोजनों में... किसी से छुपा है क्या ?
तो मेरे मैथिल संगी साथियों, आपने लोड बिलकुल नहीं लेना है... खड़े हो जाना है, "जय-जय भैरवि" गा लेना है, आहा-आहा, विलक्षण, वाह वाह से कुछ शब्द बोल लिख देना है और आस पास देखकर वायु त्याग कर आनंद लेते रहना है.
बांकी मैं तो हूँ ही आपका शुभचिंतक !
प्रवीण कुमार झा
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