हनुमान जन्म
महाराजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं परंच पुत्रहीन ही थे. काफी जप तप किया गया, कई जतन हुए... आखिरकार एक बड़े यज्ञ का आयोजन हुआ. यज्ञ की पूर्णाहुति के साथ ही एक फल की प्राप्ति हुई. ब्राह्मणों द्वारा इस फल के टुकड़े तीनों रानियों को खिलाने का आदेश हुआ.
महारानी कैकेयी जब फल खा रही थी, एक पक्षी उनके हाथ बचा टुकड़ा ले उड़ा. उधर उसी समय अंजना एक पर्वत पर पुत्र रत्न की प्राप्ति की आस में भगवान का सुमिरन करते टहल रही थी. पक्षी ने उस फल का टुकड़ा उसी पर्वत पर गिरा दिया... अंतत: पवन देव की कृपा से यह फल अंजना को प्राप्त हुआ और हनुमान का जन्म हुआ.
नोट - चूँकि कैकेयी ने भरत को जन्म दिया इसलिए हनुमान को भरत का भाई भी कहा जाता है.
हनुमान द्वारा शक्तियों की प्राप्ति
हम सबने हनुमान द्वारा सूर्य निगलने की कथा सुनी होगी. आइये उससे आगे की कथा जानें.
निगलने के प्रयास में सूर्य के करीब पहुँचते देव लोक में हाहाकार मच चूका था. आख़िरकार इंद्रदेव ने वज्र के प्रहार से हनुमान को मूर्छित कर दिया. हनुमान के पिता पवनदेव ने गुस्से में सारे जग में वायु का प्रवाह बंद कर दिया... सभी जीव जंतुओं का दम घुटने लगा. देव-लोक में पुनः हाहाकार मच गया. सारे देवता पवन देव के आगे नतमस्तक थे. प्रायश्चित स्वरुप वो सब एक एक कर हनुमान को वरदान देने लगे.
इस क्रम में सर्वप्रथम ब्रह्मा ने अमरता का वरदान दिया. साथ में 'हनुमान अपनी इच्छा से अपनी परिस्थिति बदल लेंगे' इसका वर भी दिया. सूर्यदेव ने अपनी उर्जा और चमक का एक हिस्सा तो दिया ही, उन्हें वेदों का ज्ञान सिखाने का भार भी लिया. वरुणदेव जी ने हनुमान को पानी के प्रभाव से मुक्त होने का वरदान दिया तो यमदेव ने डर से मुक्ति का. उधर कुबेर ने हनुमान को गदा प्रदान कर हर युद्ध में विजय प्राप्ति का वरदान दिया. पवन देव इतने पर भी नहीं माने तो ब्रह्मा ने आगे से हनुमान के किसी भी हथियार से घायल न होने का वर दे दिया. इस प्रकार से हनुमान ने शक्तियां भी पायीं और पवन देव ने संसार में पुनः वायु सेवा बहाल की.
हनुमान का सिंदूर स्नान
हनुमान ने अपने प्रभु श्रीराम के लिए स्वयं को न्योछावर कर दिया. प्रभु की सारी ईच्छाओं की पूर्ति हेतु जी जान से लग गए. प्रभु को व्याकुल न होने दिया. बलि पर विजय, समुद्र लांघना, माता सीता को सन्देश, लंका-दहन... रावण से युद्ध विजय आदि आदि. हर पल हनुमान अपने प्रभु के साथ रहे... बिलकुल करीब.
प्रभु श्रीराम के अयोध्या लौटने पर हनुमान ने देखा सीता माता हर पल उनके प्रभु के साथ रह्तीं. उन्हें तकलीफ होती किन्तु चुप रहते. कई अवसर पर जब अकेले माता सीता ही प्रभु श्री राम के पास रहती तो हनुमान किसी तरह राम नाम का जाप करते समय गुजारते.
एक दिन हनुमान से रहा नहीं गया. वो अपने भाई समान भरत के सामने फ़ैल गए. व्याकुल हो, भावनाओं में आकर बोले - "बड़े भाई, मैंने क्या क्या नहीं किया... मुझसे ऐसी क्या गलती हुई की मैं हर पल अपने प्रभु के साथ नहीं रह सकता ?" - भरत को जवाब न देते देख हनुमान भाव विह्वल हो बोले - "भैया, मैं प्रभू के पास रहकर अपने भूख-प्यास, आराम.. सबको त्याग दूंगा, बस मुझे बताओ की आखिर सीता माता का कौन सा ऐसा तप ऐसा है जिसकी वजह से उन्हें वो अधिकार प्राप्त है जो मुझे नहीं ?"
भरत बोले - "हनुमान, वो उनकी पत्नी है, उनके नाम का सिंदूर अपनी मांग पर लगाती हैं..." - हनुमान के मन में बात बैठ गयी. उनके और प्रभु श्रीराम के बीच की बाधा मिटा देना चाहते थे वो.
अगले दिन राम-दरबार लगा. सब हनुमान को तलाश रहे थे. दरबार में हमेशा प्रभु श्रीराम के चरणों के पास रहने वाले हनुमान आज कहीं नहीं थे. प्रभु श्री राम भी चिंतित थे... कर्त्तव्य वश राज काज का कार्य चलने लगा.
इसी बीच हनुमान का पदार्पण हुआ. मगर यह क्या, हनुमान ने सारे शरीर में सिंदूर क्यों पोत रखा था ? दरबार में हंसी गूंजने लगी... भरत हनुमान जी के पास जा कर पूछने लगे - "हनुमान भाई, ये सब क्या है ? क्यों किया ये सब ? क्या प्रयोजन था ?" - हनुमान चुपचाप प्रभु श्रीराम के सिंहासन की तरफ बढ़ रहे थे. वो राम के चरणों में पहुँच बोले - "मेरे प्रभु, मेरे राम, सीता माता एक चुटकी सिंदूर की वजह से प्रतिपल आपके साथ रहने का अधिकार पाती हैं, आज मैं पुरे अयोध्या का सिंदूर अपने शरीर पर ले आया हूँ... अब तो चरणों से दूर नहीं करोगे प्रभु ?"
दरबार में शान्ति थी... सबकी आँखों में आंसू मात्र थे.
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आप सबको हनुमान जन्मोत्सव की शुभकामनाएँ !
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