इतिहास रोचक आ अजब गजब अहि। सबटा एक दोसरा सौं जुड़ल आ जे कहूँ नजरि दौगबी त सब किछ आस पास सेहो।
हिंदुस्तान में मुगल सल्तनतक आखिर बादशाह छला बहादुर शाह ज़फर। चूंकि हुनका समय में अंग्रेजक प्रादुर्भाव भ गेल छल, ओ 1857 में अपना के हिंदुस्तानी शासक बुझैत अंग्रेजिया शासन सौं मुक्ति लेल देशव्यापी आन्दोलनि ठानि देलनि। दुर्भाग्यवश अंग्रेज सब अही क्रांति के नृशंस दमन क देलक आ मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर के नज़रबंद क के बर्मा में राखि देल गेल। तत्पश्चात दिल्ली में बांचल खुचल हुनक परिवार के सेहो यातना द क्रमश: मारि देल गेल।
मुगल आ अंग्रेजी सल्तनत के बीचक अहि युध्द में जीवित बचि गेला बहादुर शाह के जेठ पुत्र मिर्ज़ा दारा बख़्त के पुत्र शहज़ादा जुबैरुद्दिन। उचितन येह छला मुगल साम्राज्य केर बारिस आ ताहि कारण सौं अँग्रेज़ी सल्तनत हिनका सेहो सज़ा द देलकनि।
अँग्रेजिया आदेशक मुताबिक शहज़ादा हिन्दुस्तानक कोनो एक स्थान पर ३ बरख सौं बेसी नहि रुकि सकैत छला। अहि सज़ा के क्रम में शहज़ादा जुबैरुद्दिन तीन बरख धरि बनारस रुकला। अहि ठाम दरभंगा के तत्कालीन महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह सौं हिनक भेंट भेलनि।
मुगल बादशाह आ बहादुरशाह जफरक पूर्वज अकबर कहियो दड़िभंगा राज स्थापित केने छलाह। अहि हिसाबे जौं देखल जाय त शहजादा जुबैरुद्दीन आ तात्कालीन दड़िभंगा महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह साम्राज्य भाय (संकेतात्मक रुपे) भेला। परिणाम ई जे बनारस में दूनू गोटे के एक दोसरा सौं भेंट घांट आ हेम छेम भेल। वर्तमान दड़िभंगा राजक राजा लक्ष्मीश्वर सिंह के शहज़ादा के हालात देख दया आबि गेलनि, ओ मैथिल गुणे हुनका दरभंगा आबि रुकय के नोत द देलखीन।
आब शहज़ादा दरभंगा महराज के अतिथि भ गेलाह। चूँकि दरभंगा महराजक पैठ अंग्रेज दरबार में सेहो छल, किछ समय बीतलाक बाद ओ शहज़ादा जुबैरुद्दिन के सज़ा सेहो माफ़ करबा लेलनि। आब शहजादा तीन साल बीतलाक बादो दड़िभंगा में रहि सकैत छला।
मिथिला में एकटा कहबि छैक - "जेबह नेपाल, कपार जेतह संगे" - शहज़ादा के दरभंगा प्रवासक बाद पहीने हिनक पुत्र के देहावसान भ गेलनि आ ओकरा बाद स्त्री के। चूंकि अहि नश्वर संसार में सब के जेबाक नियम बनल छैक किछु समयावधि के बाद महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंहक देहांत सेहो भ गेलनि। मुदा नीक गप ई जे महाराजक मृत्यु के बाद हुनक उत्तराधिकारी रमेश सिंह सेहो शहजादा के दड़िभंगा राजक अतिथि बनौने रहला।
अहि सब खिस्सा में एकटा महत्वपूर्ण बात छुटि गेल। बात सौं पहिने फेर एकटा कहबि। अहाँ सब सुनने होयब - "वंशक गुण कम बेस धीया पुता में आबिये जायत छैक" अहि हिसाबे बहादुर शाह ज़फर सन शायर के शहज़ादा पोता में सेहो लेखन कला कुटि कुटि के भरल छल। पुत्र आ पत्नी के वियोग में ओ अधिकतर जीवन एकाकीपन के दंश सहैत शायरी करैत बितौला। दरभंगा में रहैत ओ ६ टा किताब लिखलनि। अहि में "मौज-ए-सुल्तानी" सब सौं बेसी चर्चित किताब छल। अहि किताब में शहजादा जुबैरुद्दीन देश भरिक रियासतक शासन व्यवस्था के खिस्सा लिखने छथि।
जुबैरुद्दीन द्वारा लिखल पुस्तक "चमनिस्तान-ए–सुखन" एकटा शायरी संग्रह छल जखन कि "मशनवी-दूर- ए- सहसबार" महाकाब्य थीक। "मशनवी-दूर-ए- सहसबार" किताब में शहज़ादा जुबैरुद्दिन गोरगन दरभंगा राज परिवार आ मिथिला के संस्कृतिक ज़िक्र सेहो केने छथि।
साल 1905 में हुनका मृत्य के बाद तत्कालीन दरभंगा महराज रामेश्वर सिंह भाटीयारी सराय रोड में हुनक मकबरा बनौलनि। ई भटियारी सराय एखुनका दरभंगा के मिश्र टोला लग अहि।
एहि प्रकारेण लाल पाथरक किला में रहनिहार मुगल वंशक अंत दरभंगा में लाल ईंट सौं बनल मकबरा में भ गेल। #दड़िभंगा
नई जानकारी मिली
ReplyDeleteबहुत नीक जानकारी
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