Wednesday, 15 January 2025

पाँच गोट मैथिली कविता - प्रवीण कुमार

बंधुगण, हम टोई टापि मैथिली लिखबाक प्रयास करैत छी। स्पष्ट जे, निम्नस्तरीय मैथिली लिखैत छी। ताहु में गद्य त थोडेक पढल लिखल अहियो, पद्य में हम भुसकोले। खैर, जे से... अग्रिम माफीक संग अपन पाँच टा कविता/ पद्य पसारबक धृष्टता कS रहल छी।

आई हम कविता लिखब !
(1)
हे, अहाँ छिटकले रहब !
कहु त, कतेब आब सहब,
हमहु अपन बात कहब
आई हम कविता लिखब।

असग़रे कतेक चलब
किनको संग त जियब-मरब
हमरो कियो मनायत आ हम लड़ब
आई हम कविता लिखब।

आब न पसारब, आ नहिये जोड़ब
हाथ फूल नहि जे नित तोड़ब
कतेक अहाँ'क ताल पर सुर हम छेड़ब
आई हम कविता लिखब।

सबटा कहब, पड़त सुनब
तपलहूँ, मुदा किएक जड़ब
कपार, पाथर कहाँ जे फोड़ब
आई हम कविता लिखब।

मथब, घोंटब, विचाराब
नोड़ायब, औनायब
नै आब बेसी विचारब
आई हम कविता लिखब।

हम कोशिश करैत छी
(2)
खुशिये मात्र टा रहि जाइक,
मोन सँ सबहक द्वेष-ईर्ष्या
सबटा छटि जाइक
हम कोशिश करैत छी

होइक सब मे प्रेम अगाध
पीठ मे नै
गाँथय कियो ककरो गाँथ
हम कोशिश करैत छी

होइक नै दुःख मन केँ कोनो मन सँ
हरियर रहय संसार सबहक
खिलय उपवन महकय चमन सँ
हम कोशिश करैत छी

सभ व्यक्त करौक अपना केँ
नहि रखौक भविष्य लेल राग कोनो
मन मे कहैत एलहुँ सब केँ
हम कोशिश करैत छी

ल' सकी दुःख सबहक माथ अपन
सहज रही तकलीफहु मे
मुस्काइत रहौक सब बिनु जतन
हम कोशिश करैत छी

होइक बँटवारा खुशीक सब मे बरोबरि
विषम होइक ने भंडार धनक
नै रहौक बाँचल मूलभूत चीज सँ कोनो नर
हम कोशिश करैत छी
...मुदा निराश भ' जाइत छी।

आदर्श लोक
(3)
आदर्श लोक'के भ रहल ओहिना विलोप
जेहिना पुरोहित आ हुनक माथक ठोप ॥

छद्म छवि आ ओहि के आभा मंडल
जेना रहौक विजेता'क मुकुट-मेडल

मंडन-विद्यापति केर नाम जपथि
चरित्-त्याग मुदा काते राखथि

सीता-अनसुइया केर जपथि नाम
देह-शृंगार' आगाँ कऽ जोड़थि दाम

झूठ-प्रपंच'क क्षणिक सु-फल
अमर्यादित मिथिला बनि रहल

पघिताय आ पागक मोह लय
बनथि विभूति, रत्न आ स्व'के जय

रोकत के, टोकत के आ के देखत आब
दूषित संस्कार सौं आह्लादित मिथिला साफ़े- साफ़ ॥

कॉफ़ी आ ‘ओ’
(4)
अक्कत तीत ब्लैक कॉफी
बेस्वाद, निरस सन्
ने मीठ आ नहिए नोनगर
मुदा तलब एहन की
जेना अहाँ के हो चाह ॥

गहिंर आ पकिया रंग
रसगर निर्मल निश्छल सुगंधि
आ पसरैत ओकर निंशा
जेना प्रीत अहां के ॥

झक्क अदत्त कप
दाग नै कोनो नहिये कथुक छाप
मुखमण्डल जेना अहाँ'के
आ व्यवहार अहि सन् ॥

भाप उठि रहल उन्मत्त
आ बूंद टूटैत कप'क कोर पर
मादकता जेना अहिंक
झहरैत पानि जेना केस सौं ॥

उसिनल आलू केर चोखा
(5)
उसिनल आलू केर चोखा
आ त'ब पर पकाओल टमाटर
संगहि कांच मिरचाई केर
छोट ओ टूक
अहिं सन सोन्ह्गर आ तीख

यादि में अहां के,
खा लईत छी हम
मेटा लईत छी अपन भूख
दफ्तर में बैसल
लैईत अझक झपकी आ सोचईत
आहां सन, की कैबता हमरो
भ जाईत नीक ?
~~~~~~~~~~~~~

8 comments:

  1. Anonymous1/15/2025

    पांचू कविता बहुत निक या भैया एक्टा किताब में संग्रह क के प्रकाशित करू ग्रेट मैथिल संघ के सब जने प्रतिभावान छी ऐ में त कीयो संदेह ने को सकेत या

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  2. Anonymous1/15/2025

    आह! वाह! अद्वितीय ।
    अद्भूत ।
    कैबता लिखि अहां त' हमरा फाइल क' देलौं।
    आब बीहनि कथाक प्रतिक्षा. ..!

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  3. Anonymous1/15/2025

    लाज़बाब भाय👌

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  4. Anonymous1/15/2025

    ❤️❤️

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  5. Anonymous1/15/2025

    Adbhut kavita

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  6. Anonymous1/16/2025

    सनगर कविवर...प्रणाम

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  7. Anonymous1/16/2025

    नीक प्रयास

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  8. Anonymous1/25/2025

    कविताक अर्थमे सुन्दर ट्रांसपेरेंसी अछि,आ शब्द लेल मैथिली भाषाक मान्य क्षितिजक अनिवार्य आ उचित विस्तार देल अछि।
    कविता नीक लागल। बधाइ।

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