Thursday, 16 January 2025

श्रेष्ठ शासक, दानवीर, धर्म रक्षक और दूरदर्शी उद्योगपति राजा - रामेश्वर सिंह ठाकुर

एक #मैथिल थे... जो 1878 में भारतीय सिविल सेवा में भर्ती हुए थे और फिर क्रमशः दरभंगा, छपरा तथा भागलपुर में सहायक मजिस्ट्रेट रहे। वो लेफ्टिनेन्ट गवर्नर की कार्यकारी परिषद में नियुक्त होने वाले पहले भारतीय भी थे।

वह 1899 में भारत के गवर्नर जनरल की भारत परिषद के सदस्य थे। बिहार लैंडहोल्डर एसोसिएशन के अध्यक्ष, ऑल इंडिया लैंडहोल्डर एसोसिएशन के अध्यक्ष, भारत धर्म महामंडल के अध्यक्ष, राज्य परिषद के सदस्य, कलकत्ता में विक्टोरिया मेमोरियल के ट्रस्टी, हिंदू विश्वविद्यालय सोसायटी के अध्यक्ष और भारतीय पुलिस आयोग के सदस्य भी थे वो मैथिल।

ये मैथिल कामाख्या मंदिर के प्रबंध न्यासी भी थे... भारतीय उद्योग संघ के अध्यक्ष भी थे, मैथिल महासभा के अध्यक्ष भी थे और गंगा केनाल कमीशन के सदस्य भी थे। 

इस मैथिल भाई ने बिहार में चीनी कारखाना लगाया, बंगाल में जुट कारखाना लगाया, कानपुर में कपड़ा कारखाना भी लगाया, असम में चाय बगान भी डाला और पटना में प्रकाशन की स्थापना भी की।

ये गैर झा / मिश्रा मैथिल ऐसे दानी थे की कोलकाता यूनिवर्सिटी, पटना मेडिकल कॉलेज, दिल्ली के लेडी हार्डिंग कॉलेज, अलाहाबाद यूनिवर्सिटी और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी को जमीन, मकान और अकूत धन दे दिया।

इतनी विविधताओं का नेतृत्व करनेवाला भारत में तो क्या दुनियाँ भर में शायद ही कोई दूसरा होगा। शासन, धर्म, स्वास्थ्य, उद्योग और शिक्षा के तत्कालीन सर्वोच्च संस्थाओं का एक साथ अध्यक्षीय पद का निर्वाहन करने की क्षमता भारत के दूसरे किसी व्यक्ति में नहीं है। 

कहते हैं रामेश्वर सिंह जब 1898 में राज दरभंगा यानी 'आरडी ग्रुप आफ कंपनी' की कमान संभाले तो कंपनी का वेल्थ 19 करोड़ के करीब था. 1929 में उन्होंने अपनी कारोबारी सूझबूझ से कंपनी को लगभग 2 हजार करोड़ की कंपनी बना दिया था. इस मैथिल का रिकार्ड रतन टाटा भी नहीं तोड़ पाये...

किन्तु... किन्तु, किन्तु, किन्तु साहिबान... हम मैथिल महान कविता पाठ, माला-दोपटा-पाग और झा-2 की आड़ में इस महापुरुष को भुला बैठे हैं। हम इनके द्वारा निर्मित बिल्डिंग्स के सामने फोटो सेशन और रील मेकिंग तो कर लेते हैं किन्तु इस महान विभूति सह उनकी कीर्तियों को बिसार देते हैं।

आज ही के दिन 16 जनवरी 1860 को जन्में दरभंगा महाराज स्व. रामेश्वर सिंह ठाकुर को नमन !


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