Thursday, 5 December 2024

जब बाल मंडली ने अंग्रेजों के प्रतिकार के लिए चाकू खरीदा

बात 1947 की है। लहेरियासराय दरभंगा में एक इंग्लिश मीडीयम स्कूल हुआ करता था - "गुरु ट्रैनिंग स्कूल" - यह स्कूल इलाके भर में गुलटेनी स्कूल के नाम से प्रसिद्ध था। उस वक्त देश भर में अंग्रेजों के खिलाफ वैसा ही महौल था जैसे आज देश भर में इन्डी ठगबंधन के खिलाफ है। इसका असर उस मिडिल स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों पर भी था। 9-10 लड़कों के झुंड ने अंग्रेजों के खिलाफ गुप्त मीटिंग कर एक मंडली बनाई जिसका नाम रखा गया "भारत बालमंडली"। ये सब लड़के समय समय पर आपस में मिलते और आजादी की लड़ाई संबंधी बातों पर गुपचुप बतियाते।

एक दिन की बात है, इन बच्चों की मंडली में एक सवाल अनुत्तरित हो खड़ा था - "यदि किसी अंग्रेजी अधिकारी ने हमें परेशान किया तो हम क्या करेंगे ?" गहन विचार विमर्श के बाद बाल बुद्धियों के झुंड ने निर्णय लिया की हम एक चाकू खरीदेंगे और ऐसी किसी भी परिस्थिति में इस चाकू से अंग्रेजों का प्रतिकार करेंगे। विषय गूढ और गंभीर था सो इसके इस्तेमाल हेतु बाल मंडली की उसी बैठक में एक कानून भी पास हुआ - यह चाकू बारी बारी से सभी मित्रों में पास होती जाएगी ताकि सब बराबर के हकदार और जिम्मेवार हों।

बच्चों द्वारा आपस में पैसा जमा होने लगा और फिर एक दिन बाजार से चाकू भी खरीद लिया गया। संयोगवश थोड़े समय बाद देश आजाद हो गया और यह चाकू अप्रयुक्त ही रह गया। नहीं नहीं, जैसे फोटो सेशन के माध्यम से गोपला जी ठाकुर और पपुआ जी जादो यह दावा करते हैं कि क्रमशः दरभंगा और पूर्णियाँ हवाई अड्डा का निर्माण उनकी ही वजह से हुआ वैसे मैं ऐसा बिल्कुल नहीं कह रहा की देश इस मंडली के चाकू खरीदने से ही आजाद हुआ था।


क्या आपको पता है कि वो कौन सा एक दरभंगिया इस मंडली का सदस्य था जो आगे चलकर मैथिली साहित्य का एक मजबूत स्तम्भ साबित हुआ ? जी, इस मंडली में थे कबिलपुर, लहेरियासराय के स्व. रामदेव झा, जो आगे चलकर न केवल मैथिली साहित्य के ध्वज वाहक बने बल्कि मैथिली साहित्य में राष्ट्रवादी विचारधारा के जनक भी रहे।
प्रवीण कुमार झा
05/12/2024 
वडोदरा, गुजरात 

No comments:

Post a Comment