Sunday, 24 March 2024

राम ही खेलते आये होली, सिया नहीं

मुझे नदी का किनारा अच्छा लगता है. अन्दर अनेकानेक हलचल लिए ऊपर से बिलकुल शांत सा जल मुझे अपना सा लगता है. कोई योजना नहीं थी, मन हुआ, चला गया. यह किनारा शहर से तक़रीबन बीस किलोमीटर दूर था... शहर के कोलाहल, ट्रैफिक और शोर शराबे से दूर होना बेहतर लगता है. शायद यह माहौल अपने गाँव के करीब लगता है इसलिए.

हाँ, वहां और यहाँ का एक अंतर है कि वहां आप पत्नी को साथ नहीं ले जा सकते. इस मामले में मुझे पर्व त्यौहार बहुत भले नहीं लगते... या फिर हो सकता है कि मेरी इस सोच के पीछे मेरा अल्प ज्ञान हो.

नहीं नहीं, मैं उन कामपंथी गैंग में से बिलकुल नहीं जिन्हें दिवाली में प्रदुषण और होली में जल समस्या दिखती है. जम कर त्यौहार मनाने का पक्षधर हूँ मैं तो. हाँ मुझे कभी कभी ये लगता है की हमारे त्योहारों में स्त्री की सहभागिता तैयारी, साज-सज्जा, पकवान निर्माण और साफ़ सफाई से थोडा ऊपर हो.

अभी होली का उदाहरण लें. छुट्टी मिली, घर का मर्द नाना प्रकार के बहानों समेत किसी ख़ास काम या दोस्त से मिलने को घर से बाहर हो जाता है. वहां वो नाचे गाये, कुर्ता फाड़े... सो कॉल्ड इलीट बने और घर आये तो भकोस ले और चीर निद्रा ले.

जी, नदी के किनारे भी अर्धांगनी के साथ ही था. मैं शायद अपेक्षाकृत पिछड़ा हूँ सो चलते चलते तय हुआ था, सुबह कुछ नहीं पकाएँगी वो और रात मैं पकाऊंगा... इसी बीच होली मिलन समारोह की याद आई... मिथिला महान वाले लोगों का विसुअल देखा - "आजा हमहूँ ओवरलोड बानी" - पर लौंडा नाच सरीखा चल रहा था...

घर में मालपुआ, मांस, दही-बड़ा, जलेबी, गुझिया, रंग-अबीर, साज-सज्जा का ओरीयान था... इलीट नहीं हूँ, अकेला आनंद लेना आया नहीं सो पत्नी का दिया प्याज ले सलाद काटूँगा... आंखें में आंसू है, मन में गाँव है, आँगन से दलान का दूर होना है, पितृसत्तात्मक कायदा, आंगन में दबी कुचली सहमी और बर्दाश्त करते चेहरे... लिली रे की कहानियों के कुछ पात्र हैं... शायद यही वजह है कि #मिथिला में #राम ही होली खेलते आये, माता #सिया नहीं... शायद वो ओरीयान में व्यस्त रहती हों...

पर्व त्योहारों का स्वरुप बदल रहा है देश दुनियां में. पारम्परिक तौर तरीके शनैः शनैः विलुप्त होते जा रहे हैं... मिथिला के गांवों में पंजाब, गुजरात और दिल्ली का खोखला अहं घुस चूका है, भांग कम, दारू अधिक हो रहा... मालपुआ आम माल से भरा कम और चाशनी में डूबा अधिक हो चला है...

पत्नी को अभी भरी दोपहरी में डाभ पीना है लेकिन उसका कहना है कि सड़क पर अकेले मत जाओ, दिमाग का डॉक्टर देखो कोई अपने लिए :(

#कुछभीलिखताहूँ
#अलरबलर

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