मित्रवत् चाचा जी एक बार मुज़फ़्फ़रपुर में साथ थे, मैंने कहा - 'चॉकलेट नहीं लाते और खिलाते आप' - तो उस वक़्त के मंहगे होटल "भारत-जलपान" में समोसा खिलवाया था उन्होंने. उस वक़्त उन्होंने कहा था - क्या नक़ली के चक्कर में हो, असली चॉकलेट गाँव में बनवाऊँगा. ..और फिर जाड़ों में जब गाँव जाते तो चाचा जी ख़ुद जाकर स्पेशल गुड की भेली बनवाते. वो उसमें ड्राई फ्रूट्स आदि डलवा कर लाते और वही हमारा चॉकलेट होता. असली वाला.
उस समय पारले की टॉफ़ी आती थी KISMI. चार आने की दो थी शायद, जो आज मुझे याद है, पहला चॉकलेट वही था. यदा-कदा मार्टेन और एक्लेयर्स खाते मगर KISMI बार बार खाते. उस वक़्त न तो इसके नाम में निहित Kiss का पता था और ना ही उसपर लगी तस्वीर में चुंबनरत दो चेहरों की समझ… ये हमारे जीभ को भाती थी, बस.
दसवीं के बाद मैं गाँव के क्रिकेट टीम का सदस्य था… हालाँकि बाद में मुझे इसकी वजह पता चली की मेरे पास नया बैट था इसीलिए मैं न केवल टीम में था बल्कि ओपनिंग भी की. मैच की पहली गेंद पर चौका लगाने पर मुझे चार छोटे छोटे लेमनचूस मिले तो चार आने के चार थे. हालाँकि यह चॉकलेट भी यादनीय है, स्पष्ट कर दूँ की मेरा कुल स्कोर भी चार रन ही रहा था.
स्वाभाविक रूप से उम्र बढ़ती गई और समझ भी. एक गर्लफ्रेंड ने KISMI का दो रुपये वाला वर्जन खिलाया, दूसरी ने Dairy Milk और तीजे ने डार्क चॉकलेट… अपनी मजदूरी के शुरूआती दौर में मेरी जेब में हमेशा चॉकलेट होत. बाद के दिनों में पत्नी के साथ खाता और फिर बच्चों के साथ भी. हालाँकि मेरा लालच कुछ ऐसा रहा कि कई बार बच्चों के लिये ख़रीदे चॉकलेट रास्ते में ख़ुद खा जाता. अभी चार साल पहले की दीवानगी ख़ास रही. मैं और मेरे CEO बोस्टन के मॉल में थे. साहब ने कहा - We are going to pay about 15K for shopping. - Boston के उस मॉल से मैंने पहले लगभग 18 हज़ार की चॉकलेट ख़रीदी और फिर उसे भारत लाने को एक ब्रीफ़केस भी. हमने अगले तीन महीने तक वो चोकलेट खाए भी और बांटे भी.
चॉकलेट के दुनियाँ भर के कई ब्रांड ट्राय किए मैंने. फ्रैंकफ़र्ट में ख़रीदा 'वाइन फ़ील्ड' चॉकलेट सबसे अलग रहा… एक साहब मेरी दीवानगी को जानते हुए हॉलैंड से मेरे लिए चॉकलेट भेजते थे. आज मुझे डार्क चॉकलेट पसंद है जो 55% लेकर 90% तक डार्क में उपलब्ध है.. Hershey, Lindt, Godibva… सब अच्छे हैं... आज के फर्जी और दूषित चॉकलेट डे का रायता इग्नोर कर कोई खिलाएगा ?
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