हमारे मिथिला में एक गाँव है - "नेहरा" - कहते हैं सुबह -सुबह इस गाँव का नाम लेना अशुभ होता है. इस 'अशुभता' से बचने को कोई इसे "बड़का गाँव" कहता है, कोई "पुबारि गाम" तो कोई "चौधरी गाम". इसी गाँव के अभिभावक कुसुम-किशोरी के यहाँ दिनांक ३ जनवरी १९३६ को एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ. यह गाँव आरम्भ से ही तुलनात्मक रूप से आस पास के गाँवों से अधिक विकसित गाँव रहा है. हालाँकि मिथिला में विकास की परिभाषा पढ़ लिख कर परदेश में नौकरी रही है. बालक पहले अर्थशास्त्र में उच्च शिक्षा और फिर लॉ की डिग्री उपरान्त कलकत्ता जाकर नौकरी करने लगा.
जैसा की होता आया है. उम्र के भिन्न पड़ाव पर लोग अपनी मान्यताएं और ज्ञान कोष अपग्रेड करते हैं. एक ब्रिटिश कंपनी में काम करते बालक ने खुद को अपग्रेड किया और उसे इस बात का भान हुआ की सफलता यह नहीं है. मंजिलें और भी हैं... ये तो छोटी पहाड़ी चढ़ा हूँ... आगे और भी कई ऊंचे पहाड़ हैं. हाँ, यहाँ नौकरी करते हमारे बालक ब्रो मैथिली आन्दोलन में भी सहभागी होते रहे.
नए मुकाम की राह में तक़रीबन सात-आठ वर्ष की नौकरी के उपरांत १९६९ में यह बालक अर्थशास्त्र पढने कैलिफोर्निया चला गया. तदोपरांत सन-फ्रांसिस्को विश्वविद्यालय से मैनेजमेंट की पढ़ाई कर १९७८ में भारत लौटा और फिर ईरान सह फ़्रांस के संस्थानों में कार्य करते स्वदेश के मुंबई और पुणे में कार्य कर रिटायर हुए.
मिथिला में रिटायर होने के बाद बहुसंख्यक अभिभावक अपने इर्द गिर्द का समाज और अपने ही बालक वृन्द को "मैनेज" करने का शौक पाल लेते हैं...धर्म-कर्म, वेद-पुराण और गाँव अधिक याद आने लगता है उन्हें... उनपर स्वयं को महान साबित करने का दवाब ठीक वैसे ही हावी हो जाता है जैसे उम्र के ४५ वसंत के बाद सुन्दर लगने का दवाब महिलाओं को और आज स्वयं को नेहरु सा बड़ा साबित करने का दवाब मोदी को है. (इन पंक्तियों पर कुतर्क को तैयार मैथिल से कहूँगा - कुएं का मेढक कब तक बने रहोगे, दुनियां देखो, व्यावहारिक बनो, सच स्वीकारो)
हाँ तो बात रिटायर होने के बाद की थी. अब तक देश समाज में केदारनाथ चौधरी के नाम से जाने माने हो चुके बालक ने मिथ तोड़ा और अपने गाँव से दूर लहेरियासराय में अपना ठिया बनाकर कथित मैथिल बुजुर्गों से अलग राह चुनी. इस तरह से लगभग सत्तर वर्ष की आयु में उन्होंने आगे का जीवन मैथिली के लिए समर्पित किया.
मेरे हिसाब में डिग्री, उम्र (अनुभव वाली, काटी गयी नहीं), पैसे खर्च करना और यात्राएं करना आपका ज्ञान बढाते हैं... संयोगवश केदार बाबु में यह चारों था. उनकी मैथिली में यह सब झलका भी. उनका साहित्य सहज भाषा, प्रवाह और व्यावहारिकता के करीब रहा. कई जागृत पाठक को ऐसा कहते/लिखते सुना - उनका लिखा पढ़ते ऐसा लगता है जैसे घटना सामने घट रही हो.
केदार बाबु के साहित्य की शुरुआत मिथिला समाज को हिलोरने की कोशिश में "चमेली रानी" और "माहुर" से हुई. उनकी साहित्य यात्रा के दुसरे फेज में ग्राम्य जीवन सह आध्यात्म को ध्यान में रख लिखी पुस्तक आयी - "करार" - इस पुस्तक के माध्यम से अपने गाँव में पाए "छोटका काका" की उपाधि को चरितार्थ किया उन्होंने... आगे "हिना" अबारा नहितन" और अंत में "अयना" - इसमें "अबारा नहितन" मैथिली फिल्म "ममता गाबय गीत" के बनने की गाथा है. मैथिली क्षेत्र के बड़े और गरिष्ठ विद्वान् इस सम्बन्ध में बोलते ही आये हैं. खासकर उनकी मृत्यु के बाद उन्हें मैथिली सिनेमा का पुरोधा कहने वाले लोग, आज सिनेमा के नाम पर खुद को महान बनाते लोग और फिल्म के बहाने अपना छुपा एजेंडा साधते लोग जीते जी उनके संपर्क से दूर ही रहे... यह नया भी नहीं है, स्व. रामदेव झा जी इसके उदाहरण रहे हैं जब दरभंगा में रहते लीजेंड लोग उनका हाल जानने नहीं गए और मृत्यु के बाद "बवाल" काटते खलिया पैर नाचे.
चूँकि अपनी उम्र के लगभग ७० वर्ष की उम्र में मैथिली सेवक बने, सो कॉल्ड एलीट मैथिली साहित्यकार सह गरिष्ठ मैथिलों के बीच स्वीकारोक्ति नहीं मिली. ऐसे उदाहरण आज भी हैं जब खुद को साहित्यकार कौम से और दूजे को "विदेह" धर्म का मानते हैं... इस पर आगे लिखकर आपका और मेरा जी कसैला नहीं करना चाहता...

एक सम्मान समारोह में मंजर सुलेमान जी ने गलत नहीं कहा था - "जैसे हरिमोहन झा अपने उपन्यास के लिए प्रसिद्ध हुए, केदार बाबु की कीर्ति भी वैसी ही है." श्रीमान कामेश्वर चौधरी ने श्री केदारनाथ चौधरी के बारे में कहा था "अंग्रेजी पढ़े ही मैथिली का सम्मान बचा सकते हैं" - मेरे हिसाब से मैथिली को वर्तमान सो कॉल्ड मैथिली पुत्रों से बचाए रखने की आवश्यकता भी है सर...
आजन्म उर्जावान और कर्मठ व्यक्ति के लिए असहाय बिस्तर बहुत कष्टकारी होता है... नमन ! श्रद्धांजलि ! #सर
नीक लिखल अति आ हमर प्रिय साहित्यकार छथि।
ReplyDeleteधन्यवाद राहुल
Deleteबड्ड नीक 👌
ReplyDeleteबड्ड कम शब्द मे, विस्तार सँ कहल 🙏
सभ उक्ति तार्किक आ सारगर्भित।
धन्यवाद. अपनेक नाम ?
Deleteकेदार बाबू बहुत आधुनिक सोचक सराहनीय मैथिली साहित्यकार छथि। बूझल कथाक अनुसार ममता गाबए गीतक लेल जे कथा केदार बाबू लिखने होएताह तकर फ़िल्कमांकन बरखो रुकि गेलाक कारणे तथा कथामे बलपूर्वक आन बात सब ठूसि देलासँ फिल्मक कथानक विश्रृंखलित अछि, गीत सब अप्रासंगिक अछि. ताहिमे केदार बाबूक कलमक दोख नहि। सादर श्रद्धांजलि। 🙏
ReplyDeleteजानकारी लेल धन्यवाद.
Deleteअंतिम पंक्ति निचोड़ है सर्र, वर्तमान मैथिली(लेखन) को मैथिली पुत्रों और मैथिली एंकराओं (कवियित्री टाइप वो लगती नहीं हैं) से सुरक्षित रखने की जरूरत है।
ReplyDeleteधन्यवाद. आप अपना नाम जाहिर करें तो बेहतर :)
Delete'नेहरा' के 'पुबारि गाँव' कहल जाय अछि हमर मात्रिक मे । यद्यपि पुवारि गाँव (नेहरा) के चौधरी खानदान से हमर संपर्क रहल अछि मुदा बहुत लंबा समय धरि हम श्री केदारनाथ चौधरी के साहित्यिक जीवन से परिचित नै छलहु। 'विदेह' के माध्यम से हुनक परिचय के संगे किछ वृतांत आ हुनक रचना पढ़बाक सेहो अवसर भेटल।
ReplyDelete"आवारा नहींतन" पढ़ि के आजादी के तत्काल बाद के अनेको सामाजिक आ राजनैतिक परिस्थिति के भान होइत छईक। इहो जे मिथिला राज्य के मांग कतेक पुराण छैक। पूर्व मे एकर की कारण आ भूमिका सब रहलई अछि।
ओहो. नब जानकारी. धन्यवाद
Deleteनीक!
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteमैंने इनके कुछ उपन्यास पढ़े हैं,'हिना' पर तीन चार पृष्ठों की प्रतिक्रिया भी लिखी है । उपन्यासों की रोचकता पाठक को बांधे रखने में सक्षम है।कल सामाजिक संजाल पर इनके दिवंगत होने की खबर भी पढ़ी। श्रद्धांजलि। 🙏
ReplyDeleteआपने इनके जीवन परिचय पर संक्षेप में बहुत कुछ लिखा। साधुवाद आपको।
आभा झा
५.४.२४
प्रणाम माते ! आपने पढ़ लिया यही बहुत है, तारीफ़ से तो "दुनियां हिला दूंगा" जैसा फीलिंग हो रहा :)
Deleteबहुत ही बढियाँ आलेख!!
ReplyDeleteअक्षरशः पढ़ि गेलहुँ । विलरणात्मक विस्तार सँ पाठकवर्ग केँ दिवंगत चौधरी जीक संदर्भ मे सम्पूर्ण जधतब भेटतन्हि । हुनक जीवनकाल मे लहेरियासराय तीन बेर जा हुनका सँ भेंट कयने रही । अहाँक व्यंग्य जायज अछि । वस्तुतः मैथिल समाज केँ शुभकामना , बधाई आ श्रद्धांजलि दूबय मे महारत हासिल छन्हि । संवेदना कोठीक कान्ह पर राखि मतंग मैथिल समाज सँ अपेक्षा राखबे बेकार । तथ्यात्मक आलेख लेल साधुवाद ।
ReplyDeleteसादर
किसलय कृष्ण
धन्यवाद किसलय.
Deleteकम शब्द में नीक जानकारी।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबढ़िया लिखे हैं, अब इनके द्वारा लिखित साहित्य का अध्ययन कर उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहूंगा। सादर नमन 🙏🏻🌷
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया लिखे !
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