Saturday, 16 August 2025

"न त्वत्समश्चाभ्यधिकश्च् दृश्यते" - खट्टर काका के संस्मरण


मैथिली साहित्यक क्षितिज पर जाज्वल्यमान नक्षत्र सन अहर्निश प्रदीप्त सर्वाधिक लोकप्रिय रचनाकार प्रो.हरिमोहन झाक जन्म १८ सितम्बर १९०८ केँ वैशाली जिलाक कुमर बाजितपुर गाम मे भेल रहनि। हिंदी आ मैथिलीक लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार जनार्दन झा जनसीदनक तेसर संतान प्रो. झा केँ संस्कार मे पांडित्य आ साहित्य परिवार सँ उपहार मे भेटलनि। बाल्यकालहि सँ 'ननकिङबू' केँ पिताक सानिध्य मे साहित्यक गहन बोध होएब आरंभ भए गेल रहनि आ खेलौनाक स्थान पर ओ शब्दालङ्कार सँ खेलाए लागल रहथि। कहबी अछि जे पिता-पुत्रक संवाद सेहो सानुप्रास पद्य मे होइत रहनि। 

प्रो. झा नियमित शिक्षा सँ दूर रहि पिताक साहचर्य मे विद्योपार्जन करैत रहलाह आ पंद्रह बरख धरि हिनक नामाकरण कोनो विद्यालय मे नहि कराओल गेल। पिताक संसर्ग मे रहैत 'ननकिङबू' पूर्ण मनोयोग सँ साहित्यिक अवगाहन करैत रहलाक आ 'अपूर्णे पंचमेवर्षे वर्णयामि जगत्रयम' चरित्रार्थ करए लगलाह । विद्यालाय मे नामांकनक समय संस्कृत मे धाराप्रवाह वक्तृता सँ अचंभित गुरुजन समाज हिनक विशिष्ट प्रतिभाक आदर कएलनि आ हिनक नामाकरण सोझे मैट्रिक मे कराओल गेल आ १९२५ मे पटना विश्वविद्यालय सँ ई प्रथम श्रेणी मे मैट्रिकक परीक्षा उतीर्ण कएलनि। १९२७ मे इंटरमिडियटक परीक्षा मे तेजस्वी छात्र हरिमोहन बिहार आ उड़ीसा मे संयुक्त रूप सँ सर्वोच्च्य स्थान प्राप्त कएलनि । १९३२ मे दर्शनशास्त्र सँ स्नातक मे सर्वोच्च स्थान प्राप्त कए स्वर्ण पदक सँ विभूषित भेलाह आ १९४८ मे पटना कॉलेज मे प्राध्यापक नियुक्त भेलाह से आगाँ पटना विश्वविद्यालय मे प्रोफेसर तथा विभागाध्यक्ष पद केँ सेहो सुशोभित केलाह ।

बाल्यकालहि सँ साहित्यिक परिवेश भेटैत रहबाक कारणेँ साहित्य मे हिनक विशेष अभिरुचि स्वभावहि भए गेल रहनि। पिता जनार्दन झा जनसीदनक बहुतो काव्यक पहिल श्रोता प्रो. झा भेल करथि। एहि क्रम मे अपने सेहो पद्य रचब आरम्भ कए देने छलाह। पिताक संग भ्रमण मे रहबाक कारण सँ हिनका विभिन्न साहित्यिक विद्वान् ओ पंडित लोकनिक सानिध्य भेटैत रहलनि। जखन पित्तिक देख-रेख मे नियमित छात्रजीवन आरंभ कएलनि तँ हिनक 'पोएट्रिक' स्थान 'ज्योमेट्री' लए लेलक। बहुमुखी प्रतिभाक संपन्न प्रो. झा सदिखन अपन अध्यापक लोकनिक प्रिय पात्र बनल रहलाह आ नियमित अध्ययनक संग साहित्य सेहो पढ़िते रहलाह। ओना तँ साहित्यिक संसर्ग हिनका सबदिना भेटैत रहलनि मुदा प्रो. झा जखन लहेरियासराय पुस्तक भंडार मे रहब आरम्भ कएलनि तखन आचर्य रामलोचन शरणक रूप मे हिनका एकगोट आदर्श साहित्यिक गुरु भेटि गेलनि। एहिठाम सँ ओ साहित्यिक क्षेत्र मे मुखर भए प्रवेश कएलनि। 

पुस्तक भंडार ताहि समय मे महत्वपूर्ण साहित्यिक केंद्र केँ रूप मे स्थापित भए गेल छल जाहि ठाम ओहि समयक अधिकांश विद्वतजनक आन- जान होइत रहैत छल। प्रतिदिन संध्या काल मे विभिन्न साहित्यिक पक्ष पर एहिठाम परिचर्चा होइत छल। एकर खूब अनुकूल प्रभाव प्रो. झाक साहित्यिक जीवन पड़ भेलनि आ हुनक साहित्यिक विकासक श्रीवृद्धि होबए लगलनि आ हिनक आरंभिक रचना सभ मैथिलीक पत्रिका 'मिथिला' मे प्रकाशित होइत रहलनि। मैथिलीक सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यास 'कन्यादान' एही पत्रिका मे पहिलुक बेर क्रमशः छपैत रहल। एही समय मे हिनक किछु छात्रोपयोगी पोथी सभ सेहो प्रकशित भेलनि यथा 'तीस दिन मे संस्कृत' ,'तीस दिन मे अंग्रेजी' आदि। ई पोथी सभ अपन रोचक शैली आ तथ्यक सहजताक कारण सँ छात्र लोकनिक बीच बहुत प्रसिद्ध भेल छल।

हरिमोहन झा जाहि समय मे रचना करैत छलाह से साहित्यिक आ सामाजिक उत्थान आ जनजागरणक समय रहैक । लोकक परिपेक्ष आ सरोकार मे परिवर्तन होएब आरम्भ भए गेल छलैक। एहि प्रभाव सँ समुच्चा विश्व एकटा नव वैचारिक परिवेश मे प्रविष्ट कए रहल छल। वैश्विक प्रभाव सँ भारत मे सेहो एकाधिक रूप मे परिवर्तन दृष्टिगोचर भए रहल छलैक । एहि परिवर्तनकारी समयक प्रभाव मे हिनक लेखनी मे समकालीन समाज मे पसरल धार्मिक रूढ़ीपंथ केर वर्णन प्रखरतम रूप मे भेटैत अछि। एहि समय मे सामान्यतः दूगोट विचारधारा मुख्य रूपेँ सक्रीय छलैक । एकटा वर्ग पाश्यात आदर्श केँ अपनबैत अपन समाज केँ पुनर्गठित आ चेतना सम्पन्न करबाक आग्रही छल तँ दोसर दिस किछु लोक अपन गौरवमय अतीत सँ सकारात्मक तत्व सबकेँ लए ताहि प्रवाभ केँ समेटैत समाज केँ पुनर्गठित आ चेतना सम्पन्न बनेबाक आग्रही छल। मिथिला पर एहि पुनरोत्थान प्रवित्ति केँ विशेष प्रभाव पड़लै। दोसर वर्ग जे पहिलुक स्थापित व्यवहारक सीमा मे रहैत सुधार चाहैत छलाह तिनकर सीमा के तोरैत हरिमोहन झा धर्मसातर पर प्रहारक रुख अपनौलनी। 

हुनक साहित्य में बुद्धिवाद और तर्कवाद केर सर्वोपरि स्थान भेटैत अछि आ हुनक धारणा रहैन जे तर्क नहि कए सकैत अछि से मूर्ख अछि। हिनक रचना मे एक दिस बौद्धक दुख:वाद केर प्रभाव तँ दोसर दिस चार्वाक केर दर्शनक प्रभाव भेटैत अछि। हिनकर लेखनी मे वर्ण व्यवस्थाक निंदा,दलित विमर्शक पक्ष,सामंती शोषणक विरोध आदि बड़ कम भेटैत अछि,तें हिनका मार्क्सवादी किंवा जनवादी तँ नहि मानवतावादी कहब बेसी युक्तसङ्गत होएत आ से हिनक रचना कन्याक जीवन आ पांच पात्र मे देखल जा सकैत अछि। ई धार्मिक पाखंड केँ अपन लेखनीक जड़ि बनौलनि आ किंसाइत एहि केँ सभक बीज मानि साबित करबाक यत्न कएलनि जे नाक एम्हर सँ छुबु वा उम्हर सँ बात एक्कहि।

अपन रचना काल मे प्रो. झा करीब दू दर्जन पोथीक रचना कएलनि। ई मूलतः गद्यकार छलाह। हिनकर लिखल मैथिली कृति मे विशेषतः उपन्यास आओर कथा अछि । यद्यपि पंडित झाक कविता सेहो ओतबे मनलग्गू आ प्रभावकारी होइत छल। कविता सभ मे व्यंग केर माध्यम सँ सामाजिक व्यवस्था पर प्रहार करैत हिनक कविता ढाला झा ,बुचकुन बाबू, पंडित आ मेम आदि सभ एखनहुँ प्रासंगिक अछि । हिनका द्वारा लिखल गेल उपन्यास सभ मे कन्यादान आ द्विरागमन सबसँ बेसी प्रसिद्ध अछि। बस्तुतः ई एके उपन्यासक दू भाग कहल जएबाक चाही । कथा संग्रह सभ मे प्रणम्य देवता,चर्चरी आ रंगशाला प्रमुख अछि । एकर अतिरिक्त हिनक आत्मकथा 'जीवन यात्रा' जे साहित्य अकादमी सँ छपल आ एहि पोथी पर पंडित झाकेँ मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार देल गेलनि। हिनक रचना सभ 'हरिमोहन झा रचनावली' नाम सँ सेहो प्रकाशित भेल अछि। हिनक सर्वश्रेष्ट कृति भेलनि 'खट्टर काकाक' तरंग' जकर अनुवाद कतेको भाषा मे भेल। प्रो. झा दर्शनशास्त्रक उद्भट विद्वान छलाह। एहि विषय मे हिनक सेहो किछु महत्वपूर्ण पोथी आ अनुदित पोथी सभ अछि। जाहि मे न्याय दर्शन(१९४०), निगम तर्कशास्त्र (१९५२),वैशेषिक दर्शन (१९४३),भारतीय दर्शन (अनुवाद १९५३) आ ट्रेन्ड्स ऑफ लिंग्विस्टिक एनेलिसिस इन इंडियन फिलोसोफी । एहि सभ मे हिनकर शोध ग्रंथ - “ट्रेन्ड्स ऑफ लिंग्विस्टिक एनेलिसिस इन इंडियन फिलोसोफी” सर्वाधिक प्रसिद्ध अछि। हिनक किछु रचना संस्कृत मे सेहो भेटैत अछि जाहि मे 'संस्कृत इन थर्टी डेज ' आ 'संस्कृत अनुवाद चंद्रिका' छात्रोपयोगी आ प्रसिद्ध अछि। एकर अतिरिक्त प्रो झा कतिपय पोथी/पत्रिकाक सम्पादन कएल जाहि मे 'जयंती स्मारक प्रमुख अछि।

प्रो.झा द्वारा लिखल कथा आ ताहि मे वर्णित पात्र लोकक स्मृति मे सहजहि घर करैत अछि आ किछु पात्र तँ एतेक प्रचलित भेल जकर उदहारण एखनहुँ लोकव्यवहार मे अकानल जा सकैत अछि। चाहे तितिर दाई होथि वा खटर काका। के एहन मैथिलीक पाठक हेताह जे एहि पात्र सँ अवगत नहि हेताह। वस्तुतः प्रो झा केँ अपन भाषा पर ततेक मजगूत पकड़ छनि जे अपन शब्द विन्यास सँ कथानक केँ नचबैत लोकक स्मृति मे अपन विशिष्ट स्थान बनबैत अछि। अपन कथा सभ मे क्लिष्ट संस्कृतक शब्द सभक परित्याग करैत लोक मे प्रचलित शब्द आ फकड़ा आदिक प्रयोग करैत रचना सभ केँ जनसामान्यक लगीच अनैत अछि। गामक ठेंठ शब्द आ गमैया परिवेशक वर्णन करैत सामाजिक कुरुति पर व्यंगक माध्यमे अपन भाषाक निजताक पूर्ण व्यवहार करैत अमर रचना सभ करैत रहलाह। रचना सभ पढ़ैत काल वर्णित घटनाक्रम सद्य: घटित आ वास्तविक प्रतिक होइत अछि। पढ़ैत काल कखन हँसी छुटत आ कखन आँखि नोरायत ई अटकर कठिन भए जाइत अछि। 
हिनक रचना सभ मे परिवर्तनक स्वर उठैत अछि। नव परिवेशक झाँकी प्रस्तुत करैत अछि। पाठक केँ उचित -अनुचित सँ अवगत करबैत ओकरा अपन स्वत्व केँ चिन्हबाक मादे प्रेरित करैत अछि। ग्रामसेविका,मर्यादाक भंग ,ग्रेजुएट पुतौह एहने भूमिका मे लिखल कथा सभ अछि जे एकटा परिवर्तित समाज आ ताहि मे स्त्रीक भूमिका केँ सोंझा अनैत अछि। सामाजिक रूढ़ता पर प्रहार करैत कथा कन्याक जीवन , परिवारिक सामंजस्य आ मध्यम वर्गीय परिवारक सुच्चा चित्रण करैत कथा पंच पत्र आ मिथिलाक व्यवहार सँ परिचित करबैत कथा तिरहुताम सन अनेको कथा सभ अपन संवाद शैली आ कथ्य केर लेल विश्व साहित्यक कोनो भाषा केँ समक्ष ठाढ़ होएबाक सामर्थ्य रखैत अछि।

प्रो.झाक पत्र लिखबाक शैली सेहो विलक्षण रहनि। पिता,अग्रज,माए,पुत्र आ पत्नी सँ नियमित पत्राचार होइत छलनि।आगाँ साहित्यिक पत्राचार सेहो खूब होबए लगलनि। एहि पत्र सभ मे एकदिस प्रो.झाक व्यक्तिगत जिनगी केँ बहुत लगीच सँ देखल जाए सकैत अछि तँ दोसर दिस समकालीन परिदृश्य आ परिस्थितिक केँ सेहो फरीछ अवलोकन होइत अछि। आत्मीय भाषा शैली आ लेखनी मे निहित आपकता सहजहि आकर्षित करैत अछि। हिनक एहि विधाक विलक्षणता दू गोट कथा मे खूब प्रमुखता सँ उजागर भेल अछि। पहिल कथा अछि पाँच पत्र आ दोसर अछि दरोगाजीक मोंछ। पाँच पत्र कथा मे पांच गोट छोट -छोट पत्रक सङ्कलन अछि आ विशेषता ई जे पांचो पत्र विभिन्न मनोभावक मे एकटा समयांतरक संग लिखल गेल अछि। कथाक स्वरुप एकदम छोट अछि मुदा जँ भाव पक्षक विस्तार करी तँ एकटा सम्पूर्ण महाकाव्य बनि सोझाँ अबैत अछि। अभिव्यंजनाक शैली मे लिखल ई कथा अपन विशिष्ट शैलीक कारणे मैथिली साहित्य मे पृथक स्थान रखैत अछि। एहि मे निहित यथार्थक बोध ,करुणा ,सम्बन्धक गरिमा ओ आत्मीयता ,वैवाहिक जीवन आ पारिवारिक स्थिति एकहि संह मुखर भए पाठकक सोझाँ अबैत अछि। दोसर कथा अछि दरोग़ाजिक मोंछ। एहि मे संशय आ द्वन्द केर चित्रण भेल अछि जकर जड़ि मे रहैत अछि एकगोट अधटुकड़ी पत्र। ई कथा अपन रोचक सस्पेंश आ विलक्षण शिल्पक एकगोट माइलस्टोन ठाढ़ करैत अछि। प्रो.झाक केँ डायरी लिखब सेहो खूब रुचैत रहनि। प्रतिदिन किछु ने किछु लिखथि। अपन विचार सभकेँ 'My Stray Thoughts' शीर्षक सँ नोटबुक मे लिखल करथि। एहिसभ विधा मे लिखल रचना सभ संकलन आ प्रकाशनक माँग करैत अछि जाहि सँ पाठक अपन लोकप्रिय साहित्यकार केँ आओर लगीच सँ जानि सकताह।

हरिमोहन झाक गद्य सँ हमरा लोकनि खूब नीक सँ परिचित छी। एहन विरले मैथिली साहित्यानुरागी होएताह जे हिनक कथा सँ परिचय नहि हेतनि। गद्यक तुलना मे हिनक पद्य सँ पाठकक परिचय कम भेल अछि। हिनक गद्य ततेक लोकप्रिय भेलनि जे एहि आलोक मे हिनक पद्य हराएल सन लगैत अछि। बाद मे हरिमोहन झा रचनावली भाग ‍१ सँ ४ धरि प्रकाशित भेल आ रचनावलीक चारिम भाग मे हुनक ओ कविता सभ संकलित कएल गेल जे प्रणम्य देवता ओ खट्टर ककाक तरंग नामक पोथीमे नहि आएल छल। हरिमोहन झा समय-समय पर कविता सेहो लिखैत रहलाह जे विभिन्न समकालीन पत्र - पत्रिका सभ मे प्रकाशित होइत रहल। 

मिथिला मे व्याप्त आडम्बर, अर्थाभाव, परिवर्तित होइत समय आदि विभिन्न विषय पर लिखल हिनक कविता सभ अपन विलक्षण शिल्प आ अद्भभुत शैलीक हेतु सर्वथा पठनीय आ चिंतनीय अछि। हरिमोहन झाक कविता सभ सेहो हुनक कथे जकाँ हास्य-व्यंग सँ ओतप्रोत अछि। एहि व्यंगक ई विशेषता अछि जे ई अपन साहित्यिक गरिमाक निर्वहण करैत एकटा नव दृष्टिकोण पाठकक सोझाँ अनैत अछि। स्थापित चलन ओ कोनहुना ढोआ रहल परिपाटीक विरोध जखन एहि विधाक संग पद्य मे अबैत अछि तँ मनलग्गू होएबाक संगहि एकटा गंभीर विमर्श ठाढ़ करैत अछि जाहि मे समकालीन परिस्थितिक संग आँखि मिलेबाक खगता अभरैत अछि। प्रो.झाक कविता कतेको कवि सम्मलेन आ कवि गोष्ठीक आकर्षण रहल अछि।

प्रो झाक जीवन एकटा स्फुट किंवदंती सँ कम नहि कहल जाए सकैत अछि। प्रो.झा सँ संबंधित बहुतो संस्मरण सभ भेटैत अछि। एहि संस्मरण सभ मे हुनकर व्यक्तित्वक विलक्षणता ,आशु प्रतिभा, नामक धाख,साहित्यिक ओजन ,लिखबाक सनक आ अधीत विद्वताक परिचय भेटैत अछि। हिनक सद्यः स्फूर्त कविताक विषय मे एकगोट प्रचलित संस्मरण एहि प्रकार सँ अछि। जखन ई बीस बरखक रहथि तखन भारतीय हिंदी साहित्य सम्मलेनक अधिवेशन ( मुज्जफ्फारपुर) हरिऔधजीक अध्यक्षता मे भेल रहैक आ मंच पर रामधारी सिंह दिनकर,गोपाल सिंह नेपाली,राम वृक्ष बेनीपुरी सन उद्भट विद्वान सभ उपस्थित रहथिन। एहि बीच एकटा ठेंठ भोजपुरिया कवि मंच पर आबि तिरहुतिया केँ बनबए लगलाह आ कविता पाठ करैत कहला : "अइली अइसन तिरहुत देस/मउगा अदमी उजबुज भेस// मन लायक भोजन न पैली,चुडा दही फेंट कर खैली। एकर उतारा मे प्रो. झा अपन कविता मे कहलखिन -"भोजपुरिया सब केहन कठोर ,पुछैथ तसलबा तोर की मोर// सतुआ के मुठरा जे सानथि,चुडा दहिक मर्म की जानथि। सभा भवन करतल ध्वनि सँ गूँज उठल,हरिऔध जी माला पहिरौलखिन,बेनीपुरी जी बजला बचबा खूब सुनाओल,थएथए भ गेल ,आ भोजपुरिया कवि भरि पाँज कए धए कहलखिन आब तिरहुतक लोहा मानि गेलहुँ। ` 

एहने एकटा आओर संस्मरण अछि। एक बेर आकाशवाणी मे प्रतिभागीक चयन करबाक लेल हिनका जज चुनल गेल रहनि। एकटा गायक ऑडिशन मे समदाउन उठओलक "बड़ रे जतन सँ सिया दाए कें पाललहुँ , सेहो रघुबर लेने जाय।" से तेना खिसिया कए गौलकैक जे बुझाए सियाजीक पोसबाक खरचा माँगि रहल हो। जखन हरिमोहन झाकें पूछल गेलनि जे समदाउन केहन लागल तँ ओ अपन उत्तर मे कहलखिन जे हिनक विधा सँ सम हटा दियौ, ई दाउने टा कए रहल छथि।

मैथिली साहित्य मे विद्यापतिक बाद सबसँ लोकप्रिय जँ कोनो साहित्यकार भेलाह तँ से थिकाह हरिमोहन झा। हिनका द्वारा बनाओल साहित्यिक पात्र सभ आमलोकक बीच खूब प्रचलित भेल। जिनका साहित्यिक रूचि नहिओ रहनि सेहो लोकनि एहि पात्र सभसँ परिचित छलाह आ सामाजिक विभिन्न पक्ष केँ एहि पात्र सभक माध्यम सँ बूझैत छलाह। कोनो साहित्यकारक सभ सँ पैघ उपलब्धि ई होइत छैक जे ओकर रचनाक प्रभाव सँ किछु सकारात्मक परिवेशक निर्माण समाज मे होइ आ ई उपलब्धि तखन आओर विशिष्ट भए जाइत छैक जखन रचनाकार केँ प्रत्यक्ष रूप सँ ई दृष्टिगोचर होइत छैक। प्रो. झाक साहित्यक लोक पड़ अकल्पनीय प्रभाव पड़लैक। कन्यादान पढ़लाक उपरान्त बहुतो युवक लोकनि अपन विवाह मे टाका नहि लेलनि। गामक कतेको कन्या लोकनि बुच्चीदाइ सँ प्रभावित भए आधुनिक शिक्षा लेबाक लेल अग्रसर भेलीह। जाहि अभिजात्य वर्गक किछु लोक हिनक विरोध करैत छल ,हिनक साहित्य केँ अश्लील कहैत छल ताही वर्गक बहुतो माए लोकनि अपन कन्याक विवाह मे 'कन्यादान' पोथी साँठए लगलीह। एहन कहबी अछि जे अभिजात्य पंडित वर्ग प्रो. झाक साहित्यक दिन मे खिधांस करैत छलाह ओ लोकनि राति मे लालटेन मे हिनक साहित्य पढ़ैत छलाह। प्रो. झा मिथिला मे व्याप्त आडम्बर,स्त्री शिक्षाक प्रति उदासीनता, कन्या विवाह आ बहु विवाह सन स्थापित कुरीति आ जाति-धर्मक विभेद मे ओझराएल समाजक विभिन्न आयाम केँ अपन साहित्य मे उजागर करैत,अपन तर्क सँ ओकरा खंडित करैत, ताहि सँ होबए बाला हानि केँ उजागर करैत सहज भाषा आ मनलग्गू संवाद शैली मे पाठक धरि आनि एकदिस सूतल समाज मे चेतनाक विस्तार कएलनि आ दोसर दिस मैथिली कथा साहित्य केँ मजबूती दैत स्थापित सेहो कएलनि।

जहिना विद्यापति मैथिली पद्य केँ स्थापित कएलाह आ एकरा आमलोक धरि पहुँचा साहित्यिक प्रतिष्ठा प्रदान कएलनि तहिना हरिमोहन झा मैथिली गद्य केँ एकटा नव आयाम दैत बेस पठनीय बनओलनि आ मैथिली गद्यक विद्यापति कहेबाक अवसर पओलनि। मैथिलीक श्रीवृद्धिक लेल आजीवन साकांक्ष रहल प्रो. झा द्वारा लिखल उपन्यास 'कन्यादान' पर पहिल मैथिली सिनेमा सेहो बनल। एखनधरि मैथिली मे सबसँ बेसी पढ़ल जाए बला लेखकक गौरव सेहो हिनकहि प्राप्त छनि। हिनक बहुत रास पोथी आब अनुपलब्ध भए रहल अछि आ एहि पोथी सभक मात्र फोटोकॉपी उपलब्ध भए पबैत अछि। एहि मादे विशेष पहल करबाक खगता अछि। मैथिलि भाषा केँ स्थापित करबा मे, लोकप्रिय बनएबा मे, एकर एकगोट बजार विकसित करबा मे हिनक योगदान अभूतपूर्व छनि । ई काव्य शास्त्र विनोदेना बला उक्ति केँ पूर्णतः सत्यापित करैत काव्य, शास्त्र आ विनोद तीनू पर सामान अधिपत्य रखैत अपन रचना सभ मे दिगंत धरि जिबैत २३ फ़रवरी १९८४ केँ देहातीत भेलाह। जिनकर एक कान मे सदति वेदक ऋचा गुंजायमान होइत रहलनि आ दोसर कान मे फ्रायड किंवा चार्वाकक सूक्ति समाहित रहनि, जे विनोद मे खट्टर कका रहथि आ दर्शन मे विकट पाहून, जिनका पर कन्यादान दायित्व रहनि आ तकर जे द्विरागमन धरि निर्वाह कएलनि,मैथिली साहित्यक एहि पितृ पुरुषक आयाम केँ प्रणाम।

सन्दर्भ :
१.देसिल बयना –हरिमोहन झा विशेषांक
२.अंतिका – हरिमोहन झा विशेषांक
३. हरिमोहन झा रचनावली
४. जीवन यात्रा
५ . बिछल कथा

विकास वत्सनाभ

आरएसएस आ स्वतंत्रता संग्राम - संक्षिप्त विवरण


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्थापना 1925 मे डॉ॰ केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा नागपुर मे भेल छल। संगठनक मुख्य उद्देश्य हिंदू सभके एकजुट करबाक आ समाजक नैतिक मूल्य सभके सुदृढ़ करबाक छल। ध्यान देबऽ जोग बात ई जे स्व. हेडगेवार स्वयं पहिले कांग्रेस-नेतृत्व वाला राष्ट्रीय आंदोलन में सहयोगी छलाह आ ओ लोकमान्य तिलकक विचार सँ बेसी प्रभावित छलाह। विद्यार्थी जीवन मे ओ ब्रिटिश शासनक खिलाफ बहुत आंदोलन मे भाग लेने छलाह जाहि में असहयोग आंदोलन (1920–22) सेहो शामिल अछि।

संघ केँ लय विरोधी इतिहासकार सभक दृष्टिकोण अलग छल। बहुतों इतिहासकार मानैत छथि जे स्थापनाक बाद आरएसएस सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930–34) अथवा भारत छोड़ो आंदोलन (1942) सन नमहर आंदोलन मे भाग नहि लेने छल। हुनक सबहुक मतानुसार ताहि समय संगठन राजनीतिक टकरावक बजाय सामाजिक कार्य, अनुशासन आ वैचारिक प्रशिक्षण पर बेसी ध्यान देने छल। 1930–40 दशकक ब्रिटिश खुफिया रिपोर्टक मुताबिक़ आरएसएस केँ राजनीतिक रूप सँ ब्रिटिश शासनक लेल खतरा नहि मानल गेल छल। बल्कि संगठन समाज सुधार, भविष्यक भारत आ हिंदू एकजुटता के लय के बेसी मुखर छल। 

अहि सभ में पूर्वोत्तर राज्य आ पटना में व्याप्त देह व्यापार रोकब आ तखन के पाकिस्तान में स्त्री सब के सुदृढ़ आ एकजुट करब आरएसएस महिला विंग के प्रमुख काज छल। 

आरएसएस समर्थक आ ओहि सँ जुड़ल इतिहासकार मानैत छथि जे संगठन अप्रत्यक्ष रूप सँ स्वतंत्रता संग्राम में अपन योगदान देने छल। संघ सामाजिक अनुशासन, एकता आ राष्ट्रीय गौरवक भावना जागृत करब, जकरा ओ औपनिवेशिक शासनक खिलाफ दीर्घकालीन तैयारीक हिस्सा मानैत छलाह- अहि दिशा में प्रयासरत छलाह। अहि वर्ग के इतिहासकार लोकनि हेडगेवारक स्वतंत्रता आंदोलन में व्यक्तिगत योगदान आ किछु स्वयंसेवक द्वारा क्रांतिकारी गतिविधि सह स्वतंत्रता संग्राम संगठन में शामिल हेबाक बात सेहो कहैत छथि।

सारांश ई जे प्रत्यक्ष सशस्त्र वा जन-राजनीतिक संघर्ष में आरएसएसक भूमिका सीमित रहल मुदा अप्रत्यक्ष योगदानक तौर पर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, सामाजिक एकता आ नैतिक दृष्टि सँ समाजक तैयारी द्वारा राष्ट्र-निर्माण में संघ के भूमिका मुखर आ अग्रणी रहल।

Monday, 4 August 2025

काली भैंस के दूध से कैसे गोरा हो सकता हूँ माँ - संघी मोगैंबो

एक वक़्त था जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सनातनी और देशभक्ति की विचारधारा में पलने वाले अमरीश पुरी जी ने कभी भी फिल्मों में काम न करने का निर्णय लिया था। बाद में मुंबई रहकर लगभग 18 वर्ष के संघर्ष के बाद फ़िल्मों की शुरुआत करते हुए उसी अमरीश पुरी ने हिंदी के अलावा कन्नड़, पंजाबी, मलयालम, तेलुगू, तमिल और हॉलीवुड समेत करीब 400 फिल्मों में काम किया। 

जी हाँ, अमरीश पुरी संघी थे ! 

अमरीश पुरी का जन्म 22 जून 1932 को पंजाब प्रान्त हुआ था। उनके पिता का नाम लाला निहाल सिंह और माता जी का नाम वेद कौर था। चमन पुरी, मदन पुरी, बहन चंद्रकांता और उनके छोटे भाई हरीश पुरी समेत वो पाँच भाई बहन थे। पंजाब और फिर दिल्ली के अपने घरों में रहकर उन्होंने आरम्भिक शिक्षा प्राप्त की थी। 

उनके बचपन की एक रोचक बात है कि चूँकि वो दिखने में सभी भाई बहनों में थोड़े काले थे, पहले तो काफी दूध पीया की शायद गोरा हो जाऊं फिर एक बार जब काली भैंस देखी तो कहा की इसके दूध से तो मैं और भी काला हो जाऊंगा, क्योंकि भैंस काली है - सो अपनी माता जी को आगे भैंस का दूध न देने का आग्रह कर दिया। 

अमरीश के बड़े भाई चमन और मदन पुरी सिनेमा में पहले से थे। मदन तो कोलकाता से अपनी नौकरी छोड़कर मुंबई चले गए थे जिसपर अमरीश पुरी के पिता बहुत नाखुश थे। उनके हिसाब से उनके परिवार में सबको सरकारी नौकरी करनी चाहिए। बकौल निहाल सिंह, फ़िल्मी दुनियां पाप और पापियों का अड्डा है जहाँ सिर्फ राजा महाराजा टाइप लोगों को जाना चाहिए। वो अपने साथ रह रहे अमरीश को अक्सर ऐसा कहते कि फिल्मों से दूर रहो। नतीजतन अमरीश पूरी ने लगभग 15 साल की बाली उम्र में ही यह तय कर लिया कि था वो कुछ भी करेंगे, फिल्मों में नहीं जायेंगे।


निहाल सिंह जी की सोच के पीछे एक ख़ास वजह थी। उन्होंने अपने भतीजे और संभवतः बॉलीवुड के पहले सुपर स्टार के एल सहगल को मात्र 42 वर्ष की उम्र में मरते देखा था। कहते हैं, शहगल साहब ड्रम के ड्रम रम पी जाया करते थे... तो अमरीश जी अपने पिता को दुःख न पहुंचाने का और फिल्मों की ओर रुख न करने का प्रण लेते हुए बी एम् कॉलेज शिमला में मन लगा कर पढ़ने लगे... ताकि अच्छी सरकारी नौकरी मिल सके। 

चूँकि वो वक़्त आजादी से पहले का था। कॉलेज के शुरूआती दिनों में ही देशप्रेम और आज़ादी की ओर आकर्षित होते हुए अमरीश पुरी ने आर. एस. एस. की सदस्यता ले ली। संघ के साथ जुड़कर अमरीश जी के साथ दो महत्वपूर्ण बातें हुयी। पहला की - उनके आदर्श बदल गए और "फ़िल्मी दुनियां गलत है" - अपने पिता के अलावा वो भी ऐसा मानने लगे। दूसरी बात - अमरीश पुरी देशभक्ति के रंग में रंग गए। उस वक़्त संघ की 'राष्ट्र के लिए बलिदान' की विचारधारा से प्रभावित अमरीश पुरी थोड़े दिनों में ही संघ के प्रशिक्षु से प्रशिक्षक बन गए। वो संघ के शिविरों में युवाओं को सैनिक प्रशिक्षण देने लगे। संभवत: आजीवन अनुशासित और सादगी भारी ज़िंदगी को जीना उन्होंने यहीं से सीखा। 

संघ के सम्बन्ध में अपनी आत्मकथा में उन्होंने कहा है - "बहुत ईमानदारी से कहूंगा कि मैं हिंदुत्व की विचारधारा की ओर आकर्षित हुआ था, जिसके अनुसार हम हिंदू हैं और हमें विदेशी शक्तियों से हिंदुस्तान की रक्षा करनी है, उन्हें निकाल बाहर करना है ताकि अपने देश पर हमारा शासन हो। लेकिन, इसका धार्मिक कट्टरता से कोई सम्बंध नहीं था, यह मात्र देशभक्ति थी"

आगे जनवरी 1948 में महात्मा गांधी की हत्या और उसमें संघ के होने की सम्भावना ने अमरीश पुरी को संघ से थोड़ा विमुख कर दिया। वो इसके ख़िलाफ़ कभी कुछ न बोले किंतु धीरे धीरे अलग होकर कॉलेज में नाटक और गायन करने लगे। यही नहीं, शिक्षा पूरी कर वो मुंबई अपने भाई मदन पुरी के पास चले गए। 


कई सारे स्क्रीन टेस्ट में फ़ेल होने के बाद अमरीश पुरी ने वहाँ मुफ़्त में थिएटर में काम करना शुरू किया। गुज़ारे के लिए यहाँ वहाँ नौकरी में हाथ मारते रहे। कभी माचिस के ब्राण्ड का कमीशन एजेंट बने तो कभी बीमा कम्पनी के लिपिक। बीमा कम्पनी में काम करते उसी दफ़्तर में उनकी जीवन संगिनी भी मिली। 27 वर्ष की उम्र में उन्होंने उर्मिला जी से शादी कर ली। ज़िम्मेवारी बढ़ी तो ध्यान ऐक्टिंग से हट कर नौकरी पर ही रहा। दफ़्तर के ही एक महानुभाव इब्राहिम अलका जी को न जाने कैसे उनमें ऐक्टर दिख गया और वो मुफ़्त में थिएटर करने लगे।  

क़िस्मत देखिए की पहले नाटक में अंधे का रोल मिला और दूजे में मृत व्यक्ति का। दोनों रोल में आँखें निर्जीव और खुली रखनी थी। इस तरह लगभग 17-18 साल मुफ़्त में थिएटर करते अमरीश पुरी अपनी पहली फ़िल्म के मक़ाम पर पहुँचे। अपनी राष्ट्रवादी छवि और लॉबी न बना पाने की आज से उन्हें कोई नामचीन पुरस्कार तो नहीं मिल पाया किंतु दर्शकों का बेपनाह प्यार ऐसा मिला की लोग फ़िल्मी दुनियाँ के विलेन "मोगेम्बो" और "मिस्टर इंडिया" से प्रेम करने लगे। लोग हीरोईन के खड़ूस बाप बलदेव सिंह को दिल दे बैठे। 

अमरीश पुरी के अभिनय से सजी कुछ मशहूर फिल्मों में 'निशांत', 'गांधी', 'कुली', 'नगीना', 'राम लखन', 'त्रिदेव', 'फूल और कांटे', 'विश्वात्मा', 'दामिनी', 'करण अर्जुन', 'कोयला' आदि शामिल हैं। उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय फिल्‍म 'गांधी' में 'खान' की भूमिका भी निभाई थी। उनके जीवन की अंतिम फिल्‍म 'किसना' थी जो 2004 में ब्रेन ट्यूमर से हुई उनकी मौत के बाद 2005 में रिलीज हुई। 

थिएटर से कोई पैसा न बना पाने वाले अमरीश पुरी ने कहा था - "मैंने जीवन में जो कुछ हासिल किया उसका श्रेय सिर्फ़ और सिर्फ़ थिएटर को जाता है।" अपनी आत्मकथा "एक्ट ऑफ़ लाइफ़" में अमरीश पुरी कहते हैं - "जीवन का सूक्ष्म अवलोकन ही एक अभिनेता को असाधारण बनाता है।"

Tuesday, 29 July 2025

मुगल साम्राज्यक अंत दरभंगा में

इतिहास रोचक आ अजब गजब अहि। सबटा एक दोसरा सौं जुड़ल आ जे कहूँ नजरि दौगबी त सब किछ आस पास सेहो। 

हिंदुस्तान में मुगल सल्तनतक आखिर बादशाह छला बहादुर शाह ज़फर। चूंकि हुनका समय में अंग्रेजक प्रादुर्भाव भ गेल छल, ओ 1857 में अपना के हिंदुस्तानी शासक बुझैत अंग्रेजिया शासन सौं मुक्ति लेल देशव्यापी आन्दोलनि ठानि देलनि। दुर्भाग्यवश अंग्रेज सब अही क्रांति के नृशंस दमन क देलक आ मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर के नज़रबंद क के बर्मा में राखि देल गेल। तत्पश्चात दिल्ली में बांचल खुचल हुनक परिवार के सेहो यातना द क्रमश: मारि देल गेल। 


मुगल आ अंग्रेजी सल्तनत के बीचक अहि युध्द में जीवित बचि गेला बहादुर शाह के जेठ पुत्र मिर्ज़ा दारा बख़्त के पुत्र शहज़ादा जुबैरुद्दिन। उचितन येह छला मुगल साम्राज्य केर बारिस आ ताहि कारण सौं अँग्रेज़ी सल्तनत हिनका सेहो सज़ा द देलकनि। 

अँग्रेजिया आदेशक मुताबिक शहज़ादा हिन्दुस्तानक कोनो एक स्थान पर ३ बरख सौं बेसी नहि रुकि सकैत छला। अहि सज़ा के क्रम में शहज़ादा जुबैरुद्दिन तीन बरख धरि बनारस रुकला। अहि ठाम दरभंगा के तत्कालीन महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह सौं हिनक भेंट भेलनि। 

मुगल बादशाह आ बहादुरशाह जफरक पूर्वज अकबर कहियो दड़िभंगा राज स्थापित केने छलाह। अहि हिसाबे जौं देखल जाय त शहजादा जुबैरुद्दीन आ तात्कालीन दड़िभंगा महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह साम्राज्य भाय (संकेतात्मक रुपे) भेला। परिणाम ई जे बनारस में दूनू गोटे के एक दोसरा सौं भेंट घांट आ हेम छेम भेल। वर्तमान दड़िभंगा राजक राजा लक्ष्मीश्वर सिंह के शहज़ादा के हालात देख दया आबि गेलनि, ओ मैथिल गुणे हुनका दरभंगा आबि रुकय के नोत द देलखीन। 

आब शहज़ादा दरभंगा महराज के अतिथि भ गेलाह। चूँकि दरभंगा महराजक पैठ अंग्रेज दरबार में सेहो छल, किछ समय बीतलाक बाद ओ शहज़ादा जुबैरुद्दिन के सज़ा सेहो माफ़ करबा लेलनि। आब शहजादा तीन साल बीतलाक बादो दड़िभंगा में रहि सकैत छला। 

मिथिला में एकटा कहबि छैक - "जेबह नेपाल, कपार जेतह संगे" - शहज़ादा के दरभंगा प्रवासक बाद पहीने हिनक पुत्र के देहावसान भ गेलनि आ ओकरा बाद स्त्री के। चूंकि अहि नश्वर संसार में सब के जेबाक नियम बनल छैक किछु समयावधि के बाद महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंहक देहांत सेहो भ गेलनि। मुदा नीक गप ई जे महाराजक मृत्यु के बाद हुनक उत्तराधिकारी रमेश सिंह सेहो शहजादा के दड़िभंगा राजक अतिथि बनौने रहला। 

अहि सब खिस्सा में एकटा महत्वपूर्ण बात छुटि गेल। बात सौं पहिने फेर एकटा कहबि। अहाँ सब सुनने होयब - "वंशक गुण कम बेस धीया पुता में आबिये जायत छैक" अहि हिसाबे बहादुर शाह ज़फर सन शायर के शहज़ादा पोता में सेहो लेखन कला कुटि कुटि के भरल छल। पुत्र आ पत्नी के वियोग में ओ अधिकतर जीवन एकाकीपन के दंश सहैत शायरी करैत बितौला। दरभंगा में रहैत ओ ६ टा किताब लिखलनि। अहि में "मौज-ए-सुल्तानी" सब सौं बेसी चर्चित किताब छल। अहि किताब में शहजादा जुबैरुद्दीन देश भरिक रियासतक शासन व्यवस्था के खिस्सा लिखने छथि। 

जुबैरुद्दीन द्वारा लिखल पुस्तक "चमनिस्तान-ए–सुखन" एकटा शायरी संग्रह छल जखन कि "मशनवी-दूर- ए- सहसबार" महाकाब्य थीक। "मशनवी-दूर-ए- सहसबार" किताब में शहज़ादा जुबैरुद्दिन गोरगन दरभंगा राज परिवार आ मिथिला के संस्कृतिक ज़िक्र सेहो केने छथि।

साल 1905 में हुनका मृत्य के बाद तत्कालीन दरभंगा महराज रामेश्वर सिंह भाटीयारी सराय रोड में हुनक मकबरा बनौलनि। ई भटियारी सराय एखुनका दरभंगा के मिश्र टोला लग अहि।

एहि प्रकारेण लाल पाथरक किला में रहनिहार मुगल वंशक अंत दरभंगा में लाल ईंट सौं बनल मकबरा में भ गेल। #दड़िभंगा

बिहार की बाढ़ : कितनी ईमानदारी

बात 2018-19 सत्र की है। बिहार (असल में मगध) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने विधान सभा में बिहार के वर्तमान बाढ़ के ऊपर काफी लंबा चौड़ा और उत्तेजक भाषण दिया। इससे पहले सिंचाई और जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा जी ने भी विधान भवन में बाढ़ सुरक्षा पर बड़ी बड़ी बातें की थीं। वो वर्तमान में तटबंधों के सुरक्षित होने और आगे बाढ़ नियंत्रण हेतु बड़ी बड़ी आगामी योजनाओं के बारे में बता रहे थे। हालांकि आर जे डी के एक विधायक ने उनसे सारी रिपोर्ट झूठी होने की बात कही, किन्तु मंत्री जी ने एक सिरे से उनको नकार दिया।

यदि तथ्यों को देखें तो कुल मिलाकर नीतीश कुमार जी ने विधान सभा में भ्रामक और अर्ध सत्य बातें की थी और फिर बाद में उनके मंत्री जी ने भी सायं काल तक इस झूठ के पुलिंदे को जारी रखा था उस वक़्त।


मंत्रालय और मुख्यमंत्री दोनों बिहार में बाढ़ के इतिहास और नेपाल में अतिवृष्टि को बाढ़ का कारण बताते रहे। मंत्री जी को आजादी से पहले और फिर 1947, 1951, 1991, 2004 और 2011 कि बातें याद थी। उन्हें जो बात या तो नहीं याद थी या फिर उन्होंने जिस बात का जिक्र जानबूझकर नहीं किया वो बात थी राष्ट्रीय आपदा विभाग द्वारा लगभग 5 साल लगाकर तैयार की गई रिपोर्ट। 

ख़ैर, तो थोड़े दिनों बाद हालात ये होता है कि बिहार के कई इलाके बांध टूटने से गांव में घुस आये पानी से तबाह हो जाता है, NDRF मुस्तैद होता है किन्तु उनकी संख्यां और आवश्यक नाव आदि काफी कम मात्रा में मौजूद होती है। अधिकतर स्थानों पर सरकारी तंत्र राहत के नाम पर झूठ और दिखावा अधिक कर रहा होता है और अधिकतर अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगता है। 

इन सब बातों के बावजूद मेरी समझ से संजय झा जी को कम से कम साल 2019 के बाढ़ का दोषी नहीं कहना चाहिए हमें। हालांकि उनके भूतकाल की वजह से उनकी नियति और किस्मत ऐसी है कि उनका हर एक काम विवादित और निंदनीय हो ही जाता है। संजय झा जी दोषी हैं किंतु बाढ़ की तैयारी और उससे निबटने के दोषपूर्ण तरीके के लिए नहीं बल्कि बिना सारी बात जाने, पूर्वग्रह में बड़ी बड़ी बातें और वादे करने के। 

आगे बढ़ने से पहले जान लें कि मंत्री जी की यह बात बिलकुल सच है कि २०१९ की बाढ़ का पानी 2004 से अधिक था। किन्तु इन्हीं सरकारों द्वारा अधिक संख्यां में निर्मित सड़क पुलों की वजह से एक दो जगह छोड़कर यह अधिक जगह नहीं ठहरा। यही वजह भी है कि अभी तक हुआ नुकसान 2004 की अपेक्षा में काफ़ी कम है। 

अब बात राष्ट्रीय आपदा विभाग के रिपोर्ट और केंद्र सह राज्य सरकार को बढ़ नियंत्रण की अनुशंसा की - बात 2007 की है, राज्य में जेडीयु और भाजपा की सरकार के आरक्षित मुख्यमंत्री थे श्री नीतीश कुमार जी। उस साल भी राज्य में बाढ़ की समस्या विकराल थी। जैसे तैसे बुरा समय कटा और कुछ भले लोगों की वजह से देश के गृहराज्य मंत्री ने बिहार की बाढ़ पर विस्तृत अध्ययन और समाधान के लिए NIDM (National Institute of Disaster Management) को आदेश जारी किया। 

प्रोफेसर संतोष कुमार, अरुण सहदेव और सुषमा गुलेरिया की एक कमिटी बनी जिन्होंने अपनी रिपोर्ट 2013 को केंद्र और राज्य सरकार को सौंपी। पूरी रिपोर्ट विस्तृत शोध से भरी और काफी लंबी है किन्तु इसकी अनुसंशा कमाल की, सच के काफी करीब और मेहनत से लिखी गयी है। 

मेरी समझ में किसी भी सरकार या मंत्रालय को अलग से बाढ़ नियंत्रण पर शोध पर समय व पैसा नहीं फूंकना चाहिए। जो भी लोग ऐसा कहते हैं कि हम ऐसा करेंगे या वैसा करेंगे उनको पहले कम से कम एक बार यह रिपोर्ट अवश्य पढनी चाहिए। इसे पढ़कर आपको समझ आएगा कि दरसल कुछ नहीं करना है किसी को, सब किया हुआ है और सिर्फ इम्पलीमेंट करना है। सारे जरूरी एहतियात और क़दम इस रिपोर्ट में मौजूद है, बस आवश्यकता है तो दृढ़ इच्छा शक्ति वाली सरकार और मंत्री की। 

इस रिपोर्ट में बाढ़ का सबसे बड़ा कारण हमसे सटे नेपाल की ऊंचाई और वहां से बहने वाला पानी बताया गया है और नियंत्रण के लिए मुख्य रूप से ये उपाय बताए हैं: 

- ऊंचाई वाले डैम का निर्माण (रिपोर्ट में इसके स्थान भी बताए गए हैं)
- डैम पर हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी का निर्माण,
- पानी के बहाव की मुख्यधारा से सिंचाई के नहरों का निर्माण,
- नदियों के रास्ते में किनारों पर वृक्षारोपण,
- तटबंधों का निर्माण, (1954 की रिपोर्ट के हिसाब समुचित तटबंध नहीं हैं)
- जल पथ में ऊँचे हाइवे जैसे अवरोधक रोकना,
- ऊंचाई वाले इलाके पर रिहायशी स्थान बनाना,
- नदियों के पेट से गाद की सफाई,
- अधिक प्रभावी क्षेत्र में कंप रोधी मकान बनाना,
- बाढ़ की स्थिति में बचने को शेल्टर का निर्माण और
- नाले व पोखरों की साफ सफाई. 

आगे यह रिपोर्ट बाढ़ आ जाने की स्थिति में उससे निबटने के उपाय भी बताती है। ऐसे में यदि हमारा सिंचाई मंत्रालय और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो की अब मात्र मगध के मुख्यमंत्री माने जाते हैं, सचमुच इस क्षेत्र में बाढ़ नियंत्रण को लेकर चिंतित है तो बजाय बड़ी बड़ी बात करने के और बाढ़ नियंत्रण के नाम पर करोड़ों फूँकने के पहले शांत मन से इस रिपोर्ट को पढ़ें और धीरे-धीरे ही सही, एक एक कदम उठाएँ... अन्यथा तो पचासियों साल से इस क्षेत्र में बाढ़ राहत और बाँध में चेपी साटने के नाम पर हजारों करोड़ की लूट होती ही आ रही है... आप आगे भी लहरिया लूटते रहिए।