बात 2018-19 सत्र की है। बिहार (असल में मगध) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने विधान सभा में बिहार के वर्तमान बाढ़ के ऊपर काफी लंबा चौड़ा और उत्तेजक भाषण दिया। इससे पहले सिंचाई और जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा जी ने भी विधान भवन में बाढ़ सुरक्षा पर बड़ी बड़ी बातें की थीं। वो वर्तमान में तटबंधों के सुरक्षित होने और आगे बाढ़ नियंत्रण हेतु बड़ी बड़ी आगामी योजनाओं के बारे में बता रहे थे। हालांकि आर जे डी के एक विधायक ने उनसे सारी रिपोर्ट झूठी होने की बात कही, किन्तु मंत्री जी ने एक सिरे से उनको नकार दिया।
यदि तथ्यों को देखें तो कुल मिलाकर नीतीश कुमार जी ने विधान सभा में भ्रामक और अर्ध सत्य बातें की थी और फिर बाद में उनके मंत्री जी ने भी सायं काल तक इस झूठ के पुलिंदे को जारी रखा था उस वक़्त।
मंत्रालय और मुख्यमंत्री दोनों बिहार में बाढ़ के इतिहास और नेपाल में अतिवृष्टि को बाढ़ का कारण बताते रहे। मंत्री जी को आजादी से पहले और फिर 1947, 1951, 1991, 2004 और 2011 कि बातें याद थी। उन्हें जो बात या तो नहीं याद थी या फिर उन्होंने जिस बात का जिक्र जानबूझकर नहीं किया वो बात थी राष्ट्रीय आपदा विभाग द्वारा लगभग 5 साल लगाकर तैयार की गई रिपोर्ट।
ख़ैर, तो थोड़े दिनों बाद हालात ये होता है कि बिहार के कई इलाके बांध टूटने से गांव में घुस आये पानी से तबाह हो जाता है, NDRF मुस्तैद होता है किन्तु उनकी संख्यां और आवश्यक नाव आदि काफी कम मात्रा में मौजूद होती है। अधिकतर स्थानों पर सरकारी तंत्र राहत के नाम पर झूठ और दिखावा अधिक कर रहा होता है और अधिकतर अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंगता है।
इन सब बातों के बावजूद मेरी समझ से संजय झा जी को कम से कम साल 2019 के बाढ़ का दोषी नहीं कहना चाहिए हमें। हालांकि उनके भूतकाल की वजह से उनकी नियति और किस्मत ऐसी है कि उनका हर एक काम विवादित और निंदनीय हो ही जाता है। संजय झा जी दोषी हैं किंतु बाढ़ की तैयारी और उससे निबटने के दोषपूर्ण तरीके के लिए नहीं बल्कि बिना सारी बात जाने, पूर्वग्रह में बड़ी बड़ी बातें और वादे करने के।
आगे बढ़ने से पहले जान लें कि मंत्री जी की यह बात बिलकुल सच है कि २०१९ की बाढ़ का पानी 2004 से अधिक था। किन्तु इन्हीं सरकारों द्वारा अधिक संख्यां में निर्मित सड़क पुलों की वजह से एक दो जगह छोड़कर यह अधिक जगह नहीं ठहरा। यही वजह भी है कि अभी तक हुआ नुकसान 2004 की अपेक्षा में काफ़ी कम है।
अब बात राष्ट्रीय आपदा विभाग के रिपोर्ट और केंद्र सह राज्य सरकार को बढ़ नियंत्रण की अनुशंसा की - बात 2007 की है, राज्य में जेडीयु और भाजपा की सरकार के आरक्षित मुख्यमंत्री थे श्री नीतीश कुमार जी। उस साल भी राज्य में बाढ़ की समस्या विकराल थी। जैसे तैसे बुरा समय कटा और कुछ भले लोगों की वजह से देश के गृहराज्य मंत्री ने बिहार की बाढ़ पर विस्तृत अध्ययन और समाधान के लिए NIDM (National Institute of Disaster Management) को आदेश जारी किया।
प्रोफेसर संतोष कुमार, अरुण सहदेव और सुषमा गुलेरिया की एक कमिटी बनी जिन्होंने अपनी रिपोर्ट 2013 को केंद्र और राज्य सरकार को सौंपी। पूरी रिपोर्ट विस्तृत शोध से भरी और काफी लंबी है किन्तु इसकी अनुसंशा कमाल की, सच के काफी करीब और मेहनत से लिखी गयी है।
मेरी समझ में किसी भी सरकार या मंत्रालय को अलग से बाढ़ नियंत्रण पर शोध पर समय व पैसा नहीं फूंकना चाहिए। जो भी लोग ऐसा कहते हैं कि हम ऐसा करेंगे या वैसा करेंगे उनको पहले कम से कम एक बार यह रिपोर्ट अवश्य पढनी चाहिए। इसे पढ़कर आपको समझ आएगा कि दरसल कुछ नहीं करना है किसी को, सब किया हुआ है और सिर्फ इम्पलीमेंट करना है। सारे जरूरी एहतियात और क़दम इस रिपोर्ट में मौजूद है, बस आवश्यकता है तो दृढ़ इच्छा शक्ति वाली सरकार और मंत्री की।
इस रिपोर्ट में बाढ़ का सबसे बड़ा कारण हमसे सटे नेपाल की ऊंचाई और वहां से बहने वाला पानी बताया गया है और नियंत्रण के लिए मुख्य रूप से ये उपाय बताए हैं:
- ऊंचाई वाले डैम का निर्माण (रिपोर्ट में इसके स्थान भी बताए गए हैं)
- डैम पर हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी का निर्माण,
- पानी के बहाव की मुख्यधारा से सिंचाई के नहरों का निर्माण,
- नदियों के रास्ते में किनारों पर वृक्षारोपण,
- तटबंधों का निर्माण, (1954 की रिपोर्ट के हिसाब समुचित तटबंध नहीं हैं)
- जल पथ में ऊँचे हाइवे जैसे अवरोधक रोकना,
- ऊंचाई वाले इलाके पर रिहायशी स्थान बनाना,
- नदियों के पेट से गाद की सफाई,
- अधिक प्रभावी क्षेत्र में कंप रोधी मकान बनाना,
- बाढ़ की स्थिति में बचने को शेल्टर का निर्माण और
- नाले व पोखरों की साफ सफाई.
आगे यह रिपोर्ट बाढ़ आ जाने की स्थिति में उससे निबटने के उपाय भी बताती है। ऐसे में यदि हमारा सिंचाई मंत्रालय और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो की अब मात्र मगध के मुख्यमंत्री माने जाते हैं, सचमुच इस क्षेत्र में बाढ़ नियंत्रण को लेकर चिंतित है तो बजाय बड़ी बड़ी बात करने के और बाढ़ नियंत्रण के नाम पर करोड़ों फूँकने के पहले शांत मन से इस रिपोर्ट को पढ़ें और धीरे-धीरे ही सही, एक एक कदम उठाएँ... अन्यथा तो पचासियों साल से इस क्षेत्र में बाढ़ राहत और बाँध में चेपी साटने के नाम पर हजारों करोड़ की लूट होती ही आ रही है... आप आगे भी लहरिया लूटते रहिए।
No comments:
Post a Comment